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Friday 16 March 2012

उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की कद्र नहीं : अमरकांत


उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की कद्र नहीं : अमरकांत   

इलाहाबाद। किसी भी रचनाकार को सम्मान मिलना सुखद अनुभव होता है, वो भी अपने शहर में अपनों के बीच सम्मानित होना और भी गौरव की बात है। वरिष्ठ कथाकार अमरकांत को यह गौरव हासिल हो रहा है। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार देने के लिए ज्ञानपीठ खुद इलाहाबाद आया है। आजादी की लडाई पर आधारित उनका उपन्यास इन्हीं हथियारों से काफी चर्चित रहा। ज्ञानपीठ मिलने पर अमरकांत उत्साहित तो हैं लेकिन साहित्यकारों की स्थिति पर चिंतित भी। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की दयनीय स्थिति के लिए सरकार जिम्मेदार है। सरकार को साहित्य के प्रति ध्यान देना चाहिए। अगर ऐसा न हुआ तो साहित्य और साहित्यकार सिर्फ किताबों तक की सीमित रह जाएंगे। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश..।
लंबे इंतजार के बाद आपको ज्ञानपीठ मिलने जा रहा है, कैसा महसूस कर रहे हैं?
अच्छा लग रहा है। पुरस्कार मिलने से लेखक का हौसला बढता है। परंतु यह आखिरी मंजिल नहीं होती, बल्कि इससे कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है। मेरे लिए ज्ञानपीठ चुनौती लेकर आया है। आगे कुछ अच्छा लिखने की कोशिश करूंगा।
लेखन व निजी जिंदगी में कैसे सामंजस्य बैठाया?
लेखन मेरे लिए मिशन और जुनून है, इसके लिए शुरू से ही काम करता रहा हूं। बीच-बीच में थोडी समस्या आई परंतु परिवार के लोगों ने मेरे हर काम में साथ दिया।
आप किसकी प्रेरणा से लेखन करते हैं?
मेरे गुरु बाबू गणेश प्रसाद ने हमेशा लेखन के लिए मुझे प्रेरित किया। मैं जो हूं उन्हीं की प्रेरणा से। इसके अलावा डॉ. राम विलास शर्मा, भैरव प्रसाद गुप्त सहित अनेक मित्रों ने हमेशा साथ दिया।
इस उम्र में लेखन कैसे संभव होता है?
लेखन से मैं औरों को प्रेरित करने का प्रयास करता हूं, साथ ही मुझे भी कुछ फायदा हो जाता है।
आपको कैसा फायदा?
मुझे या किसी दूसरे साहित्यकार को सरकार से तो कोई मदद मिलती नहीं है, किताबों से मिलने वाली रायल्टी से ही अपना काम चलाता हूं, कभी-कभी तो उसके भी लाले पड जाते हैं।
बीच में आपकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई?
[बीच में रोककर तल्खी भरे शब्दों में] इसके लिए सरकार जिम्मेदार है। उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की कोई कद्र नहीं है। हमें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती। हम मरे या जिएं, इसकी किसी को परवाह नहीं है, जबकि साहित्यकार समाज का चेहरा होता है।
क्या आपने सरकार से कभी मदद मांगी?
मैं मदद क्यों मांगू! ऐसा नहीं है कि हमारी स्थिति के बारे में किसी को पता नहीं है। फिल्मी कलाकारों और खिलाडियों पर करोडों रुपए लुटाए जाते हैं। मंत्री, सांसद, विधायक ऐशो आराम की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। वहीं साहित्यकारों को रोटी के लाले हैं।
जब उत्तर प्रदेश में साहित्यकारों की कद्र नहीं है तो आप कहीं और क्यों नहीं गए?
मुझे मध्य प्रदेश व दिल्ली सरकार ने वहां रहने के लिए बुलाया था। विदेशों से भी कई बार बुलावा भेजा गया। परंतु अपनी मिट्टी को छोडना मुझे गंवारा नहीं हुआ। आज भी एक कोठरी से काम चला रहा हूं।
सरकार से आप क्या मदद चाहते हैं?
सरकार को साहित्यकारों के रहने, लेखन, इलाज व पेंशन की व्यवस्था करनी चाहिए। इससे हमें काफी सहूलियत मिलेगी।
आज के साहित्यकारों को आप कैसे देखते हैं?
आज की युवा पीढी काफी अच्छा काम कर रही है। उनके पास संसाधनों की कमी नहीं है, इससे वह हमसे अच्छा काम कर सकेंगे।
आप इलाहाबाद पढाई के लिए आए थे, साहित्यकार कैसे बन गए?
मेरा लक्ष्य समाज को जगाना था, पैसा कमाना नहीं। यही कारण है कि मैं बलिया से जब यहां आया तो पढाई छोडकर आजादी की लडाई में कूद गया। बाद में पत्रकारिता के क्षेत्र में कूद गया, 40 वर्षो तक अनेक समाचार पत्र व पत्रिकाओं में संपादन किया। स्वास्थ्य खराब होने पर कहानी लेखन का कार्य शुरू कर दिया।
इतने लंबे समय में किसी से विशेष लगाव हुआ?
[थोडा असहज होकर] मुझे सबसे प्यार है, सभी अपने हैं।
आपकी कौन से पुस्तकें आने वाली हैं?
पत्रकारों के जीवन पर आधारित खबर का सूरज व सामाजिक समस्याओं पर एक थी गौरा का लेखन कर रहा हूं।

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