Tuesday, 16 May 2023
Monday, 15 May 2023
श्री रामचरित मानस पढ़ते हुए कुछ जिज्ञासाएं
श्री रामचरित मानस के अंतर्गत लंका कांड में निम्नलिखित दो चौपाई आती है। इन्हें पढ़ते हुए कुछ जिज्ञासा हुई।
चौपाई
सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥
अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता॥4॥
भावार्थ
पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार- ये जगत में बार-बार होते और जाते हैं, परन्तु जगत में सहोदर भाई बार-बार नहीं मिलता। हृदय में ऐसा विचार कर हे तात! जागो॥4॥
यहां मन में एक जिज्ञासा हुई कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने सहोदर शब्द का उपयोग क्यों किया ? राम एवं लक्ष्मण सहोदर भाई तो नहीं थे । सुमित्रा पुत्र लक्ष्मण एवं कौशल्या पुत्र श्री राम जी थे । विद्वत जन सहायता करें।
इसी लंका कांड में आगे एक और चौपाई आती है कि
चौपाई
अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥
निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥7॥
भावार्थ
अब तो हे पुत्र! मेरे निष्ठुर और कठोर हृदय यह अपयश और तुम्हारा शोक दोनों ही सहन करेगा। हे तात! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र और उसके प्राणाधार हो॥7॥
यहां भी लक्ष्मण को "निज जननी के एक कुमारा" वाली बात भी समझ में नहीं आ रही। जब कि सुमित्रा के दो पुत्र थे लक्ष्मण और शत्रुघ्न ।
विद्वान साथी सहायता करें।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र ।
Sunday, 14 May 2023
तेरे बड़े सपनों के लिए छोटा हूं मैं
तेरे बड़े सपनों के लिए छोटा हूं मैं
तेरे हांथ आया सिक्का खोटा हूं मैं ।
कहते फिरते सभी से कि सच्चे हैं
कोई है सामने जो कहे झूठा हूं मैं ।
रिश्ते नातों को निभाते संभालते
क्या बताऊं कि कितना टूटा हूं मैं ।
उसकी हां तो हां ना को ना समझा
जैसे कि बिन पेंदी का लोटा हूं मैं ।
गलतियां जहां भी की उसे कबूला है
सुबह का भूला शाम को लौटा हूं मैं ।
खेल तो सारा मुकद्दर का होगा
खेल तो सारा मुकद्दर का होगा
डूबता जहाज बवंडर का होगा ।
ईमान से लड़ेंगे पोरस कई पर
इतिहास में बड़ा सिकंदर होगा ।
वही तो रहेगा हर हाल में खुश
जो खयाल से मस्त कलंदर होगा ।
अपने दिल में थोड़ी जगह दे दो
अब वहीं पर इश्क का लंगर होगा ।
तरसता रहा मीठे पानी के लिए
जिसके आगे खारा समंदर होगा ।
गैरत थी तो अकेले ही रह गया
तेरे इशारों पर नाचता बंदर होगा ।
योग्यताएं इंतज़ार में ही रहेंगी
सिफारिश वाला कोई अंदर होगा ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र ।
आ गया खयाल तेरा नींद उड़ गई
आ गया खयाल तेरा नींद उड़ गई
तेरी हर बात से बात मेरी जुड़ गई ।
जो पसंद है तुम्हें मैंने वही बात की
फिर बात बात पर तुम कैसे लड़ गई ।
मैंने चाहा था तुम्हें ये अलग बात है
बात ही बात में बात फिर बिगड़ गई ।
मैं अकेला हो गया दूर तुम चली गई
मेरी आवाज़ पर जाने क्यों चिढ़ गई ।
सालों बाद फिर मिले अनमने से लगे
हमारे बीच में कहीं कोई गांठ पड़ गई ।
जब लिपट के दोनों ही रोए ज़ार ज़ार
आंखों ही आंखों में आंख फिर गड़ गई ।
आंसुओं से धुल गया जो भी मलाल था
रुकी - रुकी प्यार की बात फिर बढ़ गई ।
Saturday, 13 May 2023
नफरतों का कोई मुस्तकबिल नहीं होता
नफरतों का कोई मुस्तकबिल नहीं होता
मोहब्बतों का कोई मुकाबिल नहीं होता ।
जब तक मिल बैठ सलीके से बात न हो
हल कोई भी संजीदा मसाइल नहीं होता ।
रंजिशों का रंज अगर मोहब्बतें मिटा देती
तो उजाड़ मकानों में अबाबिल नहीं होता ।
छोड़कर जानेवाले इतना तुम याद रखना
हर कोई हमारी तरह जिंदादिल नहीं होता ।
यारों का साथ और संगदिली बड़ी चीज़ है
सब के नसीब शौक ए महफ़िल नहीं होता ।
कुछ रास्तों पर ये पांव ख़ुद ही रुक जाते हैं
जब कि वहां कोई भी सलासिल नहीं होता ।
जो मौसमी नालों की तरह बहते बह जाते हैं
उनके नसीब में तो लब ए साहिल नहीं होता ।
वो काम सारे मुकम्मल पूरा चाहती हैं
वो काम सारे मुकम्मल पूरा चाहती हैं
लड़कियां कहां कुछ अधूरा चाहती हैं ।
यूं ही नहीं सज़ा देती हैं घर आंगन को
ये अपनी जिंदगी में सलीका चाहती हैं ।
खिले हुए फूलों को देखकर खुश होती
ये भी उन्हीं की तरह खिलना चाहती हैं ।
उड़ती हुई तितलियों के रंग ढंग देखकर
ये भी तो अपनी मर्जी से उड़ना चाहती हैं ।
बंदरों को डालियों पर उछलता देखकर
ये भी झूले पर देर तक झूलना चाहती हैं ।
सबकुछ लुटा हंसना रोना पसंद है इन्हें
लड़कियां जिंदादिली से जीना चाहती हैं ।
ये परिंदे हैं आसमान में ऊंची उड़ानों के
इन्हें हौसला दो बहुत कुछ करना चाहती हैं ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण पश्चिम,महाराष्ट्र
Friday, 12 May 2023
मुख्तलिफ हवालों से ख़बर रखते हैं
मुख्तलिफ हवालों से ख़बर रखते हैं
तेरे चाहनेवाले तुझपर नज़र रखते हैं।
वो आते ही जाने की बात करते हैं
यूं मोहब्बत में बाकी कसर रखते हैं।
तुम कहो तो कहूं नाम सबके आगे
अरे इश्क में हम भी जिगर रखते हैं ।
मुझसे मिलने वो आयेगी यकीन है
प्यार में हम भी थोड़ा असर रखते हैं ।
मेरी गुजारिश को जादा हवा नहीं देते
हां कहते हैं किंतु अगर मगर रखते हैं ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
कल्याण
अफ़वाहें सच हैं शक के काबिल हूं
अफ़वाहें सच हैं शक के काबिल हूं
सच आ जाता है जुबां पर जाहिल हूं ।
सब अपने घरों के रंगीन पर्दों में कैद
मैं दुनियां जहान के दर्द में गाफिल हूं ।
यकीनन अभी कई आगाज़ बाकी हैं
ज़रा थके इरादों को लेकर बोझिल हूं ।
विरोध की जितनी भी संभावनाएं बनें
लिखो मेरा नाम मैं सभी में शामिल हूं ।
जितना मिटता उतना ही सुकून आया
मैं अपनी ही आहुतियों का हासिल हूं ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
महाराष्ट्र ।
कुछ गुनाह हो जाएं तसल्ली होगी
कुछ गुनाह हो जाएं तसल्ली होगी
वरना तो जिंदगी कोई खिल्ली होगी ।
अपने हुक्मरानों से सवाल नहीं करती
कौम यकीनन वो बड़ी निठल्ली होगी ।
काम बनने बिगड़ने के कई कारण होंगे
पर दोहमतों के लिए काली बिल्ली होगी ।
झूठ के चटक रंगोंवाली चंचल लड़की
जितनी शोख उतनी ही चिबिल्ली होगी ।
वक्त के साथ जरूरतें बदल जाती हैं
घर के कोने में पड़ी जैसे सिल्ली होगी ।
आते - जाते मुझे जाने क्यों चिढ़ाती है
सोचना क्या शायद कोई झल्ली होगी ।
झूठ के रंगों से पूरी दुनियां गुलज़ार है
यह बात यकीनन बड़ी जिबिल्ली होगी ।
डॉ मनीष कुमार मिश्रा
के एम अग्रवाल महाविद्यालय
कल्याण पश्चिम
कवि मनीष की कविता सादगी से परिपूर्ण सरल और जीवंत कविता है
इस बार तुम्हारे शहर में समीक्षा
डॉ उषा आलोक दुबे
हिंदी प्राध्यापिका
एम डी महाविद्यालय
परेल, मुंबई
मनुष्य की भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कविता सर्वोत्तम माध्यम है। व्यक्ति जब भी अकेले रहता है, तो उसके मन में कई विचारों का आवागमन चलता रहता है। विचारों को सुंदर तरीके से समाज के सामने रखना ऐसी कला सबके पास नहीं होती है, किंतु डॉ मनीष मिश्रा ने बड़ी ही तल्लीनता से अपने भावों को रसात्मक तरीके से व्यक्त किया है। आचार्य विश्वनाथ के अनुसार "वाक्यां रसात्मक काव्यं" को कवि अपनी कविताओं के माध्यम से चरितार्थ करने का पूरी शिद्धत के साथ से प्रयास किया हैं। मनीष की कविताओं में भावतत्व की प्रधानता स्पष्ट रूप से झलकती है।
इनकी कविताओं में सिर्फ स्त्री- पुरुष प्रेम ही नहीं बल्कि समय और समाज के तमाम छोटे-बड़े सवालों या परिस्थितियों को आंखों के सामने खड़ा करती हैं। कवि की कविता "मैंने कुछ गालियां सीखी है" यह दर्शाता है कि मनुष्य को जहां रहना है, उसे सिर्फ उस प्रदेश या राज्य की केवल सकारात्मक चीजों को नहीं बल्कि समाज के हिसाब से गलत समझी जाने वाली चीजों को भी सीखना पड़ता है। जहां हम निवास करते हैं वहां सिर्फ अच्छाइयों को नहीं बल्कि कुछ गलत चीजों को भी अपनाना पड़ता है, और जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग भी करना पड़ता है। तभी आप वहां के अपने कहलाने लगते हो। कवि अपनी कविता में कहते हैं कि"
"यहां अब देश नहीं
प्रादेशिकता महत्वपूर्ण होने लगी है।
प्रादेशिक भाषा में
गाली देने से ही
हम अपने सम्मान की
रक्षा कर पाते हैं
पराए नहीं
अपने समझे जाते हैं
इस देश के
कई प्रदेशों में
आत्म सम्मान से
जीने के लिए
अब गालियां जरूरी है"।१
इन पंक्तियों की अर्थव्याप्ति इतनी अधिक है कि इसे जिस तरह से भी व्याख्यायित करें कम ही रहेगी। कवि ने इस कविता में हमारे समग्र सामाजिक परिवेश को यथार्थपरक रखा है। यहाँ व्यक्ति नहीं बल्कि प्रादेशिकता महत्वपूर्ण हो गई है।
प्रकृति अपने आप में ही सुंदर है काव्य की सुंदरता बढ़ाने के लिए कवि अपनी कविताओं में प्रकृति का मनोहर रूप का वर्णन करते है। कवि अपनी कविता के माध्यम से केवल देवभूमि की सुंदरता ही नहीं बल्कि अपनी श्रद्धा को अर्पित करते हुए नमन करते हैं। कहते हैं कि
"हे देवभूमि
यह तुझ पर
कोई कविता नहीं
तेरे प्रति कृतज्ञता ज्ञापन है
मनुष्य की कृतघनताओं के लिए
क्षमा याचना है"।२
कवि देव भूमि को अपनी श्रद्धा अर्पित करते हुए अपने आदर्शों तथा संस्कृति का परिचय देते हैं।
कवि प्रकृति को अपने आप में ही एक सुंदर महाकाव्य बताते हुए कहते हैं कि
"इन पहाड़ों में
मानो बाचती हो
साजती हो
रचती हो
सौंदर्य का कोई महाकाव्य"।३
यहां पर सौंदर्य का संबंध केवल बाह्य जगत की अपेक्षा आंतरिक सत्ता से अधिक है कवि ने प्रकृति को बड़े ही खूबसूरत ढंग से मानवीकरण किया है।
कवि ने अपनी कविताओं को गहरे प्रेम से रचा है इस प्रेम में एक मित्र, प्रेयसी या उसकी कल्पना भी हो सकती है। जब कोई व्यक्ति अपनों को किसी अधिकारवस किसी भी तरह से संबोधित करता है, तो यह संबोधन उस रिश्ते या अपनत्व की पराकाष्ठा को बताता है।
कविता "चुड़ैल" में कवि कहते हैं कि
"जब कहता हूं तुम्हें
चुड़ैल तो
यह मानता हूं कि
तुम हँसोगी
क्योंकि तुम जानती हो
तुम हो मेरे लिए
दुनिया की सबसे सुंदर लड़की
जिसकी आलोचना
किसी भी तारीफ से
मुझे कहीं ज्यादा
अच्छी लगती है"।४
यह संबोधन ही उसकी मित्र या प्रेमिका को उसके अपनत्व का एहसास दिलाती होगी।
कविता अक्सर अपने जिए हुये पलों तथा रूमानियत के सहारे लिखी जाती है। कवि अपनी रचना के इन्हीं दोनों पक्षों का सहारा लेते हुए अपनी रचना धर्मिता की अनुभूतियों को पिरोता जाता है। कवि मनीष की कविता सादगी से परिपूर्ण सरल और जीवंत कविता है जिससे हर एक पाठक वर्ग इन कविताओं को पढ़ते हुए अपने आप ही जुड़ता चला जाएगा है।
संदर्भ ग्रंथ
1) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ६३
२) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ४१
३) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ४०
३) इस बार तुम्हारे शहर में पृष्ठ ४४
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