Friday 14 September 2012

भारत में किशोर लड़कियों की तस्करी


भारत में किशोर लड़कियों की तस्करी
                                                             डॉ मनीषकुमार सी. मिश्रा
सह-अध्येता , भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र  एवं
अध्यक्ष,  हिन्दी विभाग , के.एम.अग्रवाल महाविद्यालय
                                                      कल्याण पश्चिम , महाराष्ट्र
                                             मो. 08080303132,09324790726,
                                               ई मेल- manishmuntazir@gmail.com

      -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------                                                                          भारत देश में बाल अपराध से संबंधित जिस तरह के आंकड़े और जैसी ख़बरें लगातार सामने आ रही हैं वे चिंतनीय हैं । नैतिकता का हो रहा पतन , आर्थिक विषमता और गरीबी के साथ-साथ विक्षिप्त मानसिकता और भोग विलाश पूर्ण जीवन शैली  इस अपराध के मूल में है । शहरों की तेज रफ्तार जिंदगी में अपनी जरूरतों और अपनी मजबूरियों के बीच पिस रहे माँ-बाप चाह कर भी अधिक कुछ नहीं कर पाते। संयुक्त परिवार की संकल्पना शहरों के आर्थिक ढांचे के बिलकुल अनुकूल नहीं हैं,ऐसे में परिस्थितियाँ और विकट होती जा रही हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि संयुक्त परिवारों में सबकुछ ठीक रहता है । अध्ययन और खबरें बताती हैं कि लड़कियों का किशोरावस्था में अधिकांश बार शोषण पारिवारिक सदस्यों या रिशतेदारों द्वारा ही होता है । ऐसे मामलों में सबसे बड़ी तकलीफ तो यह होती है कि माँ-बाप लोक-लाज और पारिवारिक प्रतिष्ठा इत्यादि बातों की चिंता करते हुए ऐसे मामलों को या तो नजर अंदाज करते हैं या चुप बैठ जाते हैं ।
इस तरह के अपराधों से लड़ने की जिनकी ज़िम्मेदारी है,वे स्थितियों को और अधिक द्यनीय ही बनाते हुवे  दिखायी पड़ते हैं । कारण है प्रतिबद्धता , ज़िम्मेदारी और संवेदनाओं की कमी । हालत इतने खराब हैं कि मानव तस्करी की पीड़ित  लड़की अनाथालयों , सुधारगृहों, जेलों और अस्पतालों मे बार-बार शारीरिक शोषण का शिकार बनतीं हैं ।
सही तरह के कानून,कानून का कड़ाई से पालन और विकसित सामाजिक-आर्थिक ढाँचा इस मानव तस्करी के व्यवसाय पर लगाम लगा सकता है । एक अनुमान के मुताबिक अवैध हथियारों और अवैध नशीली दवाओं की तस्करी से जितनी आय होती है, लगभग उतनी ही या अधिक आय मानव तस्करी के व्यवसाय में भी है । The International Organisation For Migration (IOM) के अनुसार वैश्विक स्तर पे मानव तस्करी के माध्यम से लगभग 08 बिलियन अमेरिकी डालर का व्यापार होता है । किशोर लड़कियों और औरतों की तस्करी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है , यह पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है ।
सामान्य तौर पे मानव तस्करी को वेश्यावृत्ति या देहव्यापार तक सीमित समझा जाता है, लेकिन मानव तस्करी का बहुआयामी स्वरूप कंही अधिक विकराल है । देह व्यापार या वेश्यावृत्ति को इसका एक हिस्सा मात्र समझना चाहिए । जीवनयापन के सीमित साधन , सीमित संसाधन, बढ़ती बेरोजगारी, कमजोर आर्थिक परिस्थितियाँ, असमान क्षेत्रिय विकास, स्थानांतरण मजबूरी तथा जीवन मूल्यों में आ रही गिरावट मानव तस्करी की त्रासदी के लिए सीधे तौर पे जिम्मेदार है ।
मेरे इस अध्ययन का उद्देश्य यही है कि प्रमुख सामाजिक समस्याओं के परिप्रेक्ष में  क़ीमत और मूल्यों की जो लड़ाई इस बाजारीकरण ने शुरू कर दी है उसमें हम मानवीय सोच और मानवीय मूल्यों को बचाने की दिशा में एक पहल कर सकें साथ ही साथ दिन ब दिन कमजोर होती जा रही संवेदनाओं को कसमसाने का एक अवसर प्रदान कर सकें । किसी ने लिखा भी है कि –
                                          करनी है हमें एक शुरुआत नई
                                          यह सोचना ही एक शुरुआत है ।
                                         

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