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Wednesday, 10 May 2023

सूखे कई गुलाब

 सूखे कई गुलाब किताब में रह गए

हम यूं जिंदगी के हिसाब में रह गए ।


मैंने सोचा आज तो ईद मुबारक होगी 

वो चांद आया पर हिजाब में रह गए । 


कुछ न बन पाए तो जहीन बन गए

यूं हर एक को करते आदाब रह गए ।


सवाल सारे गलत थे जो जिंदगी में 

हम उलझे उनके ज़बाब में रह गए ।


           डॉ मनीष कुमार मिश्रा 





तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥

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