सपने भी आज कल आते नहीं ;
सपने भी आज कल आते नहीं ;
अब कहाँ उनसे मुलाकाते करें /
दौड़ के सिने से लगते थे जो ;बेगानों सी अब वो बातें करें ;
कैसे कह दूँ गैर है वो ;
बड़े लुत्फ़ से वो मेरी शिकायतें करें /
कभी सालों में टकरा जाते हैं अनजाने में हम ;कैसे अनजानों सी मुलाकातें करें /
कैसे कहूँ वो यार नहीं है मेरा ;
मेरे पीछे वो गजब की करामातें करें /
सपने भी आज कल आते नहीं ;अब कहाँ मुलाकातें करे /
Labels: mohabbat, हिन्दी कविता hindi poetry
1 Comments:
waah ky akhoob likha hai.........gahre bhav mein doobi kavita.
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