दिल पे अंधेरे का डर सा है /
दिल पे
अंधेरे का डर सा है ;

ख्वाबों में भी उजाला कम सा है ;
उलझन नही है उससे दुरी की ;
मोहब्बत का नशा भी कम सा है /
ह्रदय की गहराईयों में एक चुभन सी है ;
मन की उचाईयों में हँसी नम सी है ;
भरोसा कैसे न करे अपनी मोहब्बत पे ;
उसके न होने पे ये मुस्कराहट भी गम सी है /
Labels: मोहब्बत, हिन्दी कविता hindi poetry
1 Comments:
waah ........bahut badhiya sher hain.
Post a Comment
Share Your Views on this..
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home