Friday, 26 June 2009

ख़बर न हुयी /

आवाज पे ,उनकी नजर ना उठी ;

पुकार पे ,मेरी पलक ना झुकी ;

कैसा वक्त था वो ,

साथ थे हम और हमें ख़बर ना हुयी /

राहों में साथ थी ;

एक ही मंजिल की तलाश थी ;

कब साथी बदल गए ,

किसी को ख़बर ना हुयी ;

घर और काम के बिच चंद लम्हों का फासला था ;

बरसों से एक ही आने जाने का रास्ता था;

लाश पड़ी रही चौराहे पे दिन भर ;

किसी को उसके घर की ख़बर ना हुयी /

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1 Comments:

Blogger vandana gupta said...

gahri samvedansheel rachna

27 June 2009 at 15:35  

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