ख़बर न हुयी /
आवाज पे ,उनकी नजर ना उठी ;
पुकार पे ,मेरी पलक ना झुकी ;
कैसा वक्त था वो ,
साथ थे हम और हमें ख़बर ना हुयी /
राहों में साथ थी ;
एक ही मंजिल की तलाश थी ;
कब साथी बदल गए ,
किसी को ख़बर ना हुयी ;
घर और काम के बिच चंद लम्हों का फासला था ;
बरसों से एक ही आने जाने का रास्ता था;
लाश पड़ी रही चौराहे पे दिन भर ;
किसी को उसके घर की ख़बर ना हुयी /
Labels: हिन्दी कविता hindi poetry
1 Comments:
gahri samvedansheel rachna
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