Thursday, 8 January 2009

वो भी कैसे दिन थे ----------------------

वो भी कैसे दिन थे जब हम , छुप के मोहबत करते थे
अम्मा,खाला,अब्बा सब की ,हम तो नजर बचाते थे

बीच दुपहरी छत के उपर,हम चोरी चुपके आते थे
घर के बुढे नौकर से भी ,हम कितना घबराते थे

रात-रात भर आंहे भरते,किसी से कुछ ना कहते थे
नजरो-ही नजरो मे,हम कितनी ही बाते करते थे


नाम तेरा जब कोई लेता ,हम तो चुप हो जाते थे
चुप रह कर भी जाने कैसे ,सुबकुछ हम कहते थे

वो भी कैसे -------------------------------




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2 Comments:

Blogger Shamikh Faraz said...

Dr. sahab 1 bar phir aapne aik achhi kavita paish ki hai. badhai.

8 January 2009 at 16:03  
Blogger  Ria Sharma said...

:)
आखिरी दो पंक्तियाँ सारी कविता का सार है
सीधी सरल कविता
सादर

13 January 2009 at 20:35  

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