Monday 29 July 2013

शिकायत सब से है लेकिन




जो कहनी थी ,
वही मैं बात,
यारों भूल जाता हूँ
किसी क़ी झील सी आँखों में,
 जब भी डूब जाता हूँ  

नहीं मैं आसमाँ का हूँ,
कोई तारा मगर सुन लो
किसी के प्यार के खातिर,
मैं अक्सर टूट जाता हूँ

शिकायत सब से है लेकिन,
किसी से कह नहीं सकता
बहुत गुस्सा जो आता है,
तो खुद से रूठ जाता हूँ

किसी क़ी राह का कांटा,
कभी मैं बन नहीं सकता
इसी कारण से मफिल में,
अकेला छूट जाता हूँ

मासूम से सपनों क़ी मिट्टी,
का घड़ा हूँ मैं,
नफरत क़ी बातों से,

हमेशा फूट जाता हूँ .

Sunday 28 July 2013

काश तुम मिलती तो बताता




यूं ही तुम्हे सोचते हुए
सोचता  हूँ क़ि चंद लकीरों से तेरा चेहरा बना दूं
फिर उस चेहरे में ,
खूबसूरती  के सारे रंग भर दूं .

तुझे इसतरह बनाते और सवारते हुए,
शायद  खुद को बिखरने से रोक पाऊंगा
पर जब भी कोशिश की,
हर बार नाकाम रहा .

कोई भी रंग,
कोई भी तस्वीर,
तेरे मुकाबले में टिक ही नहीं पाते .

तुझसा ,हू--हू तुझ सा ,
तो बस तू है या  फिर
तेरा अक्स है जो मेरी आँखों में बसा है .

वो अक्स जिसमे
प्यार के रंग हैं
रिश्तों की रंगोली है
कुछ जागते -बुझते सपने हैं
दबी हुई सी कुछ बेचैनी है
और इन सब के साथ ,
थोड़ी हवस भी है .

इन आँखों में ही
तू है
तेरा ख़्वाब है
तेरी उम्मीद है
तेरा जिस्म है
और हैं वो ख्वाहीशें ,
जो  तेरे बाद
तेरी अमानत के तौर पे
मेरे पास ही रह गयी हैं .

मैं जानता हूँ की मेरी ख्वाहिशें ,
अब किसी और की जिन्दगी है.
इस कारण अब इन ख्वाहिशों के दायरे से
मेरा बाहर रहना ही बेहतर है .

लेकिन ,कभी-कभी
मैं यूं भी सोच लेता हूँ क़ि-
काश
-कोई मुलाक़ात
-कोई बात
-कोई जज्बात
-कोई एक रात
-या क़ि कोई दिन ही
बीत जाए तेरे पहलू में फिर
वैसे ही जैसे कभी बीते थे
तेरी जुल्फों क़ी छाँव के नीचे
तेरे सुर्ख लबों के साथ
तेरे जिस्म के ताजमहल के साथ .

इंसान तो हूँ पर क्या करूं
दरिंदगी का भी थोडा सा ख़्वाब रखता हूँ
कुछ हसीन गुनाह ऐसे हैं,
जिनका अपने सर पे इल्जाम रखता हूँ .

और यह सब इस लिए क्योंकि ,
हर आती-जाती सांस के बीच
मैं आज भी
तेरी उम्मीद रखता हूँ .

इन सब के बावजूद ,
मैं यह जानता हूँ क़ि-
मोहब्बत निभाने क़ी सारी रस्मे ,सारी कसमे
बगावत के सारे हथियार छीन लेती हैं .
और छोड़ देती हैं हम जैसों को
अश्वत्थामा की  तरह
जिन्दगी भर
मरते हुवे जीने के लिए
प्यार क़ी कीमत ,
चुकाने के लिए
ताश के बावन पत्तों में,
जोकर क़ी तरह मुस्कुराने के लिए

काश, तुम मिलती तो बताता,
क़ि मैं किस तरह खो चुका हूँ खुद को ,
तुम्हारे ही अंदर  ।


एक वैसी ही लड़की




एक शाम अकेले
जाने-पहचाने रास्तों पर
अनजानी सी  मंजिल  की तरफ
बस समय काटने के लिए बढ़ते हुए
देखता हूँ
एक वैसी ही लड़की

जैसी लड़की को
मैं  कभी प्यार किया करता था

उसे पल भर का देखना
उन सब लम्हों को देखने जैसा था

जो मेरे     अंदर,
        तब  से  बसते  हैं
जब  से  उस  लड़की से,
  मुलाकात  हुई  थी
जिसे  मैं  प्यार  करता था

उस  एक पल  में
मैं जी  गया  अपना  सबसे,
  खूबसूरत  अतीत
और  शायद  भविष्य  भी  .

वर्तमान  तो  बस  तफरी  कर रहा था
लेकिन  उस  शाम की  याद
  जाने  कितने  जख्मों  को हवा  दे  गयी
काश क़ि

 वो   लड़की ना  मिलती  .

Saturday 27 July 2013

तीखी सी शरारत

              उन्हें शिकायत है कि
              मैं उनकी हर बात मान लेता हूँ
              उन्हें अक्सर याद करता हूँ
              वो जब भी बुलाती हैं
              हर काम छोडकर चला जाता हूँ
              वो कहती हैं –
              तुम्हें कुछ काम नहीं रहता क्या ?
              जब देखो कहते हो –
              तुम्हें ही याद कर रहा था
              जब भी मिलने की बात हो-
              झट से मान जाते हो
              मैं जानता हूँ कि
              उनकी यह शिकायत
              दरअसल एक शरारत है
              प्यार में

              मिठास बढ़ाती
              तीखी सी शरारत ।









उज़्बेकी कोक समसा / समोसा

 यह है कोक समसा/ समोसा। इसमें हरी सब्जी भरी होती है और इसे तंदूर में सेकते हैं। मसाला और मिर्च बिलकुल नहीं होता, इसलिए मैंने शेंगदाने और मिर...