Saturday 31 December 2011

जाते हुए इस साल में भी











जाते हुए इस साल में भी ,
तेरा सिलसिला कायम रहा ।
आनेवाले इस साल में भी,
तेरी ही जुस्तजू रहेगी ।

मेरे मौला
मेरी ज़िंदगी का कोई साल
उसके बिना ना हो ।
वो जो
ज़िंदगी का ख़्वाब है ।
ख्वाइश है ।
उम्मीद है ।
ज़रूरत है ।
इंतजार है ।
सपना है  ।
प्यार है ।
और विश्वास है ।  

Friday 30 December 2011

नए साल से कह दो कि











नए साल से कह दो कि-
वह बिलकुल तुम्हारी तरह हो ।
शोख, चंचल और मासूम ।
इतनी मुलायम और मख़मली,
जितना कि प्यार का हर सपना ।
और इतनी गर्म भी ,
जितनी की ज़िंदगी की सांसें ।

नए साल का रिश्ता उम्मीदों से वैसा ही हो,
जैसा कि हम दोनों का सालों से है।
नए साल की हर आहट,
तेरे कदमों की आहट सी हो ।

नए साल में सुलझना हर उलझन का ,
आसान हो उतना ही जितना कि -
तेरी रेशमी ज़ुल्फों का सवर जाना ।
तेरी आँखों में बसे हर मासूम सपने की तरह,
दुनिया बनती रहे ।
सजती रहे ।
सवरती रहे ।

काश कि आने वाला यह नया साल ,
तुम्हारी तरह प्यार से भरा हो ।
तुम्हारी तरह ही  खास हो ।
तुम्हारी तरह ही मुस्कुराता हुआ ,
ज़िंदगी को ज़िंदादिली से जिने का,
ख़ूबसूरत पैगाम हो ।
   

Monday 26 December 2011

International Conference on Civic Challenges, Democracy and Media



Any democracy needs a well-functioning and responsible state. But when a country is emerging from decades of dictatorship, it also needs to find ways to check, monitor, and restrain the power of political leaders and state officials. Here the role of civil society groups becomes important. Civil society means the entire range of organized groups and institutions that are independent of the state, voluntary, and at least to some extent self-generating and self-reliant. This of course includes non-governmental organizations like the ones in this room, but also independent mass media, think tanks, universities, and social and religious groups. Civil society can strengthen democracy to provide new forms of interest and solidarity that cut across old forms of tribal, linguistic, religious, and other identity ties.

Democracy can not be stable if people only associate with others of the same religion or identity. When people of different religions and ethnic identities come together on the basis of their common interests as women, artists, doctors, students, workers, farmers, lawyers, human rights activists, environmentalists, and so on, civic life becomes richer, more complex, and more tolerant. And in this situation all forms of media plays a very significant role especially the New Media. The objective of this conference is to initiate and promote a discussion on changing role of Media in Democracy. Through this forum we will provide the platform to research scholars, academicians, social activists, media professional and students of different discipline so that they can discuss the issues related to Democracy, the challenges of civic society and the different dimensions of Media. This would be a big opportunity for Media academician and Professionals to assess the democratic system and they will be able to face the current scenario.

Papers and debate will focus on Media, Civic Challenges and Democracy in the present scenario of the Nation. In a world of regular, unforeseen crises and growing power of media owners, online and otherwise, various questions about the implications for democratic processes will be explored.

Sub Themes:
1. Political System and Communication
2. Democracy and Media
3. Civil Society, Communication and Conflict
4. New Media and Society
5. Public Supervision and Social governance
6. International Communication and National image
7. Media Cultural Studies
8. Corruption in Communication
9. Caste in Media and Democracy
10. Ethics in Media Education
11. Crisis Communication and Management
12. Communication / Media Pedagogies 
13. Mapping media: Ownership and Editorial Control
14. Media Management and Challenges
15. Traditional Media in Present Scenario.
16. Social Studies and Communication Research
17. New Social Systems and Intercultural Communication
18. Film Studies and Society
19. Gender, Society and Media
20. Health, Social Changes and Responsibilities of Media


Submission of abstracts and full papers:
Send the abstract to Prof. Neeraj Khattri . Abstracts should not exceed 400 words. Submission by e-mail attachment using MS Word is required. Author will follow the APA Style for the submission.Include one separate title page containing title, author/s, affiliation/s, and the address, phone, fax and e-mail of the lead author. All the abstracts will be peer reviewed by the experts committee. Only abstracts accepted for presentation would be notified for submitting the final and full papers. Accepted research paper will be published in the reputed research journal. 
Deadline for submission of abstracts ..............................January 02, 2012
Notification of Acceptance..............................................January 16, 2012
Deadline for Registration...............................................January 31, 2012
Deadline for submission of full paper..............................February 06, 2012
Conference..................................................................February 25-26, 2012


Conference Secretariat:
For Submission of Abstracts and Full Papers:
Prof. Neeraj Khattri- Conference Convener 
Conference Secretariat, IJMC, Mangalayatan University, Beswan, Aligarh-202145 (U.P.)
Mob: +91-7351002585,  +91-9350325737
E-mail: icccdm@mangalayatan.edu.in
OR
neeraj.khattri@mangalayatan.edu.in
For Registration and Inquiry 
Shri Dhruv Sabharwal-Mob: +91- 9808586250,
E-mail:  dhruv.sabharwal@mangalayatan.edu.in
For Accomodation and Meal
Dr. Sidhartha Jain, Mob: +91-7351002588,
Email:siddarth.jain@mangalayatan.edu.in
For Transport Facility
Shri  Jitendra Singh, Mob: +91-9897784288,
Organising Committee: 
Prof. S.C.Jain, Vice-Chancellor, - Chairman & Patron
Cdr.(Retd.) Manjeet Singh, Registrar-General Secretary
Prof. H. K. Agrawal, HoD , IJMC – Secretary
Shri Samiran Baral- Finance officer
Prof.Neeraj Khattri- Conference Convener
Shri  Jitendra Singh-.Member
Shri Dhruv Sabharwal- Member
Shri Zakir Mahmood- Member
Shri Ajay Holkar- Member
Shri Rajni Pandit-Member
Shri Jayprakash Rai-Member
Conference Advisory Board: 
Shri Pawan Jain- Chairman,MU
Shri Mohan Lakhamraju-Vice-Chairman
Shri Karthik Gopalan-Vice President (Operations)
Prof.H.S.Yadav – Director, Civil Engineering
Prof.A.K. Tandon - Dean Student welfare                        
Prof.Arvind Datye -Director, IET  
Prof.G.S.Agrawal - Director, ICA
Prof.Avinash Bhardwaj-Director, IBM  
Prof.G.K. Aseri - Director, IBMER   
Prof.Chitralekha Singh-Dean, IVPAR                 
Prof.Manoj Sahni-HoD,ITHM  
Prof.Deepti Sharma-HoD, IER   
Prof. Qaiser Hayat - HoD, Legal Studies     
I shall be highly obliged if you kindly convey this information to the interested people.
For any further information please feel free to contact:                  
 Prof. Neeraj Khattri- Conference Convener 
Conference Secretariat, IJMC, Mangalayatan University, Beswan, Aligarh-202145 (U.P.),India.
Mob:+91-7351002585, E-mail: icccdm@mangalayatan edu.in 
neeraj.khattri@mangalayatan.edu.in

हिंदी के विकास में प्रवासी हिंदी ब्लागरों का योगदान


      हिंदी के विकास में प्रवासी हिंदी ब्लागरों का योगदान
                                                          * डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
सूचना और प्रौद्योगिकी के विकास ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है । इंटरनेट और वेब मीडिया के कारण पूरा विश्व आपस में जुड़ा हुआ है। रोजी – रोटी की तलाश में दुनिया भर में भारतीय जाकर बसे हुए हैं । अपने देश, अपने लोग,अपनी भाषा और संस्कृति से हजारों किलोमीटर दूर लाखों भारतीय अपने दिल में हसरतों –अरमानों के न जाने कितने ही सिलसिले दबाये बैठे हैं । सारी सुख- सुविधाओं के बावजूद कोई कसक, सब को ही अंदर ही अंदर सालती है, तड़पाती है और रुलाती भी है । अपनों से दूर जाने का दुख किसे नहीं होता ? फिर इन्ही भारतियों में से कितनों की तो दूसरी-तीसरी पीढ़ी विदेशों में ही पल बढ़ रही है । इस नई पीढ़ी का प्रवासी जीवन, इनके अंदर निहित स्वदेश प्रेम, इनका हिंदी के प्रति प्रेम,अपनी सभ्यता और संस्कृति को लेकर इनके विचार तथा अपनी ही पुरानी पीढ़ी के साथ इनका वैचारिक संघर्ष और सामंजस्य; कुछ ऐसे बिन्दु हैं जिनकी चर्चा  हिंदी के कुछ महत्वपूर्ण प्रवासी ब्लागरों के ब्लाग में व्यक्त विचारों के परिप्रेक्ष्य में इस आलेख के माध्यम से मैं करना चाहूँगा ।
यहाँ यह समझ लेना भी महत्वपूर्ण है कि प्रवासी हिन्दी साहित्य और प्रवासी हिन्दी ब्लागरों द्वारा दी जा रही जानकारी दो अलग स्थितियाँ हैं। विवाद इस बात पर हो सकता है कि प्रवासी हिन्दी साहित्य की परिभाषा क्या हो ? लेकिन यहाँ इस विवाद के लिए जगह इसलिए नहीं है क्योंकि विवेच्य शोध आलेख हिन्दी के प्रवासी ब्लागरों के ब्लॉग में व्यक्त भावनाओं के आधार पर ही उनके वैचारिक दृष्टिकोण को आकने का प्रयास है । अब ब्लाग पर उपलब्ध सामग्री को प्रवासी साहित्य के दायरे में माना जाय या नहीं , इस पर अलग से चर्चा हो सकती है । अगर माना जा सकता है,तब तो कोई विवाद ही नहीं है । जो लोग ब्लाग पर उपलब्ध सामाग्री को दोयम दर्जे का और उसे साहित्य की परिधि से ही बाहर मानते हैं, उन्हें भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि संबन्धित आलेख का विषय ही प्रवासी हिन्दी ब्लागर और उनके ब्लाग हैं।
   भाई रवि रतलामी ने ब्लागिंग और प्रवासी भारतियों के योगदान को लेकर बात-चीत के दौरान  बताया कि, ‘‘ हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास को देखें तो इसके शुरूआती पग को जमाने में प्रवासी भारतीयों का अच्छा खासा योगदान रहा है. दरअसल अपने अंग्रेज़ी ब्लॉग हिंदीमें ,हिंदी भाषा  में प्रथम प्रविष्टि लिखने का श्रेय प्रवासी विनय जैन को है. चूंकि कंप्यूटरों के लिहाज से हिंदी कॉम्प्लैक्स भाषा है, अतः शुरूआती चरणों में हिंदी में ब्लॉग लिखने व बनाने के लिए अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ती थी. इनके लिए बहुत सारे तकनीकी जुगाड़ प्रवासी भारतीयों ने किए. पंकज नरूला, जितेन्द्र चौधरी, ईस्वामी इत्यादि ने अपना ढेर सारा समय, धन व अन्य ऊर्जा हिंदी ब्लॉगों हेतु विविध किस्म के प्लेटफ़ॉर्मों जैसे नारद नामक हिंदी ब्लॉग एग्रीगेटर को बनाने व कई वर्षों तक नियमित चलाने में दिया, और हिंदी ब्लॉग बनाने के ऑनलाइन सहायता, ट्यूटोरियल प्लेटफ़ॉर्म जैसे कि अक्षरग्राम, हिंदिनी हग टूल  इत्यादि बनाए. एक अन्य प्रवासी भारतीय समीर लाल ने तमाम नए हिंदी ब्लॉगरों के ब्लॉग पोस्टों पर जाकर टिप्पणियों के माध्यम से हौसला आफजाई की और नियमित लेखन हेतु संबल प्रदान किया. 
     प्रवासी भारतीयों के ब्लॉग पोस्टों में अकसर भारत और अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम और उससे बिछुड़ने का दर्द दिखाई देता है. यह दर्द खासतौर पर वार-त्यौहार के समय और अधिक परिलक्षित होता है. राज भाटिया अपने ब्लॉग पोस्टों में जहाँ अपने विदेशी परिवेश के बारे में लिखते हैं, तो साथ ही साथ उतनी ही फ्रिक्वेंसी से अपने भारत, भारतीय संबंधों के बारे में भी संस्मरण लिखते हैं. डॉ. सुनील अपने फोटो-ब्लॉग छायाचित्रकार में बड़े ही खूबसूरत चित्रों को पेश करते हैं जिनमें बहुधा तो विदेशी होते हैं, मगर वे अपनी भारत यात्रा के समय लिए गए विशेष चित्र भी प्रकाशित करते हैं. प्रवासी ब्लॉगरों के साहित्य सृजन में भी देश प्रेम व देश से बिछुड़ने का दर्द अकसर बयाँ होता है। ” इसतरह हम देखते हैं कि प्रवासी ब्लागरों ने वेब तकनीक से अपने आप को जोड़ते हुवे अपनों से जुड़े रहने का नायाब रास्ता खोज निकाला।  
     ब्लागिंग एक ऐसी व्यवस्था है जहां आप स्वतंत्र भी हैं और स्वछंद भी, लेकिन लिखे हुए शब्दों की ज़िम्मेदारी से आप बच नहीं सकते । यहाँ आप अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के कहने के लिए जितने स्वतंत्र हैं उतने ही जिम्मेदार भी । किसी ब्लाग पर मैंने पढ़ा था कि “ ----- ब्लागिंग एक ऐसा धोबी घाट है, जहां आप जिसे चाहें उसे धो सकते हैं ।’’ बात सच है लेकिन आप जिसे धोयेंगे वह भी धोबिया पछाड़ से आप को दिन में ही तारे दिखा सकता है, इस बात का भी ख्याल रखें । नकारात्मक लोकप्रियता बड़ी घातक हो सकती है । हिंदी के वरिष्ठ ब्लागर श्री रवि रतलामी जी का स्पष्ट मानना है कि  भविष्य के सूर और तुलसी इसी ब्लागिंग जगत से ही निकलेगें । ’’ रतलामी जी की बात बड़ी गंभीर है और महत्वपूर्ण है । हमें ब्लाग जगत और वेब मीडिया पर पैनी नजर बनाए रखनी होगी । एक सिरे से इसे ख़ारिज करने से अब काम नहीं चलेगा । ब्लागिंग को बड़े ही सकारात्मक नजरिए से देखने की जरूरत है। प्रवासी हिंदी ब्लागरों के ब्लाग उनके वैचारिक धरातल का आईना हैं । इन ब्लागों पर दी जानेवाली जानकारी उनके सोचने-समझने के नजरिए को बड़े ही विस्तार के साथ हमारे सामने प्रस्तुत कर देती हैं ।
हिंदी के कई ब्लागर इन प्रवासी भारतियों पर लिखते रहे हैं । डॉ. अशोक कुमार मिश्रा जी का एक बड़ा महत्वपूर्ण आलेख हिंदी ब्लागिंग : स्वरूप, व्याप्ति और संभावनाएं नामक पुस्तक में प्रकाशित है । श्रीमती  आकांक्षा यादव भी अपने कई आलेखों में प्रवासी ब्लागरों की चर्चा करती रही हैं । श्री रवीन्द्र प्रभात, श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी , श्री रवि रतलामी , श्रीमती अनिता कुमार , श्री अविनाश  वाचस्पति , डॉ. हरीश अरोड़ा , डॉ. चंदप्रकाश मिश्र , श्री कृष्ण कुमार यादव , श्री केवल राम , श्री शैलेष भारतवासी और श्री गिरीश बिल्लोरे जैसे हिंदी ब्लागिंग जगत के सक्रिय ब्लागर प्रवासी हिंदी ब्लागरों पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया बड़ी बेबाकी से रखते आये हैं ।  प्रवासी ब्लागरों का अपनी मातृभाषा के साथ साथ अपनी मातृभूमि ही नहीं अपितु अपनों से जुड़ने की छटपटाहट भी उनको इस माध्यम से अभिव्यक्ति के लिए मजबूर करती है । ऐसे अधिकांश लोगो का बचपन उनकी अपनी माटी में बीता है और उनके संस्कार अपने वतन की संस्कृति में पोषित हैं । जब भी इस प्रकार की संभावना बनती है कि अपने  सुषुप्त मनोभावों को शब्द प्रदान किया जा सकता है, प्रवासी ब्लागर अपने को संभाल नहीं पाता । अधिकांश आलेख/ कविताएं जो किसी विषय विशेष पर न लिखे गए हों,उनका संबंध भावनात्मक क्षेत्र से ही परिलक्षित होता है । उद्देश्य भले ही लगे अपने विचारों को दूसरों तक पहुचाने का, परंतु प्रवासी ब्लागर ज्यादा उत्सुक रहता है अपनी रचनाओं पर होने वाली प्रतिक्रियाओं को लेकर। ’’ प्रतिक्रियाओं के जिस आग्रह की बात है , वह दरअसल अपनों से अपने मन को साझा करने वाली बात है ।
हाल में ही अनीता कपूर की एक कविता पढ़ी, जो प्रवासी मन में निहित भावों को गहराई से व्यक्त करती है । अपने देश की वर्तमान स्थिति से वे आहत तो हैं लेकिन इसके बदल जाने का उन्हें विश्वास भी है । आप का हिंदी ब्लाग http://test-hindi-blog.blogspot.com/ काफी प्रचलित है ।
मैं प्रवासी
सपना एक सँजोये
वर्षों से पलटती रही, पन्ने विदेशी केलेण्डर के
इंतज़ार में उस निमंत्र्ण के, जो देता माह दिसम्बर
एक ढलती शाम की विदाई का और स्वागत
होगा पाहुने सा, खिलखिलाते नूतन वर्ष का
सपना सच भी हुआ, मैं आज स्वदेश में हूँ पर बोझिल मन, और आँखें तलाशती हैं
उस प्यार, अपनेपन और उस समाज को
जो ले गयी थी, मैं अपने साथ एक धरोहर
संस्कारों और विचारों की मिट्टी की खूशबू
और पढ़ाती रही, जिसका पाठ विदेश मे
गौरवान्वित रही, भारतीय होने पर
अब क्या कहूँ , मन बोझिल है, दुखी है
पूछता आप से सवाल, क्योंकर सड़ गयी
सबसे प्राचीन सभ्यता की सुगंध ,
ढक लिया समाज को लूटपाट
अत्याचार और भ्रष्टाचार के बादलों ने
पर अभी भी देर नहीं हुई, चुनौतियाँ स्वीकारों
आओ मिल कर नव
-वर्ष को सतरंगी बनाएँ
प्यार संस्कृति के सभी रंगों से सजा कर
विश्व के आसमान पर भारत का परचम लहराएँ
’’
विश्व के आसमान पर भारत का परचम लहराने का स्वप्न वह प्रवासी भारतीय भी देखता है जो इस वतन से सालों से दूर है पर यह वतन उसके जिस्म में लहू की तरह दौड़ता है ।विकीपीडिया प्रवासी भारतीय को परिभाषित करते हुए जानकारी देता है कि,“ प्रवासी भारतीय वे लोग हैं जो भारत छोड़कर विश्व के दूसरे देशों में जा बसे हैं। ये दुनिया के अनेक देशों में फैले हुए हैं। 48 देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों की जनसंख्या करीब 2 करोड़ है। इनमें से 11 देशों में 5 लाख से ज्यादा प्रवासी भारतीय वहां की औसत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं और वहां की आर्थिक व राजनीतिक दशा व दिशा को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ’’

हम जानते हैं कि प्रवासी भारतीय दिवस भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष ९ जनवरी को मनाया जाता है। यह वही दिन है जब राष्ट्र्पिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आये थे। प्रवासी दिवस को मनाने की शुरुआत  सन २००३ से हुई थी। प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की संकल्पना स्वर्गीय लक्ष्मीमल सिंघवी जी की थी । जिन उद्देश्यों को लेकर सरकार प्रवासी दिवस मनाती है, उन उद्देश्यों की पूर्ति में हिंदी ब्लाग एवं वेब मीडिया भी अपनी बड़ी ही सार्थक और कारगर भूमिका अदा कर रहा है । इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है ।
  1. अप्रवासी भारतीयों की भारत के प्रति सोच, उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ ही उनकी अपने देशवासियों के साथ सकारात्मक बातचीत के लिए एक मंच उपलब्ध कराना ही सरकार का उद्देश्य था, प्रवासी दिवस की संकल्पना के पीछे ।  यह मंच बिना किसी रोक-टोक के हिंदी ब्लाग भी उपलब्ध करा रहे हैं।
  2. भारतवासियों को अप्रवासी बंधुओं की उपलब्धियों के बारे में बताना तथा अप्रवासियों को देशवासियों की उनसे अपेक्षाओं से अवगत कराना भी सरकार का उद्देश्य रहा । वेब जगत में प्रवासी और भारतीय दोनों ही अपने अनुभवों, विचारों, पसंद-नापसंद तथा अपने आयोजनों और उपलब्धियों को एक –दूसरे से लगातार साझा करते रहते हैं।
  3. विश्व के 110 देशों में अप्रवासी भारतीयों का एक नेटवर्क बनाना सरकारी उद्देश्यों का महत्वपूर्ण हिस्सा था जिसमे ब्लाग और वेब जगत सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से लगातार मदद पहुंचा रहा है ।
  4. भारत का दूसरे देशों से बनने वाले मधुर संबंध में अप्रवासियों की भूमिका के बारे में आम लोगों को बताना भी सरकारी नीति का हिस्सा थी जिसमे हिंदी ब्लाग बड़े महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं ।
  5. भारत की युवा पीढ़ी को अप्रवासी भाईयों से जोड़ने में भी हिंदी ब्लागिंग मददगार साबित हुई है ।
  6. भारतीय श्रमजीवियों को विदेशों में किस तरह की कठिनाइयों का सामना करना होता है, इस  बारे में विचार-विमर्श और सार्थक पहल सरकारी रणनीति का हिस्सा थी। वेब मीडिया और हिंदी ब्लाग के माध्यम से तो भारतीय श्रमजीवियों को अपने अनुभव और अपनी परेशानी को दुनिया से सीधे साझा करने का नायाब तरीका मिल गया है।
मोटे तौर पर हम यह कह सकते हैं कि सरकारी उद्देश्यों की पूर्ति में हिंदी ब्लाग सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं। यह जरूर है कि यहाँ भी कुछ लोग नकारात्मक दृष्टिकोण के साथ काम कर रहे हैं लेकिन ऐसे लोगों के पर आसानी से क़तरे जा सकते हैं । बस सरकार को ऐसे लोगों के पर कतरते हुए यह ध्यान रखना होगा कि उसका खुद का रवैया तानाशाही ना हो जाये तथा वो आम आदमी की अभिव्यक्ति एवं स्वतन्त्रता के अधिकारों का हनन और दमन ना करने लगे । हाल ही में सरकार ने जब वेब पर उपलब्ध जानकारी को लेकर आपत्ति दर्ज की तो इन सब बातों पर व्यापक चर्चा देश भर में हुई ।
          वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार राजेन्द्र यादव का मानना है कि, ‘‘ हिन्दी का लचीलापन ही उसके विकास की पहचान है। यही कारण है कि आज विदेशों में भी उसका विस्तार हो रहा है। जो लोग १००-१५० साल पहले विदेशों में बस गए, वे अब भारत लौटना नहीं चाहते। लेकिन वे वहीं पर रहकर साहित्य की रचना कर रहे हैं। अगर प्रवासी बहुत ज्यादा अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो  इससे साहित्य का विकास अवरूद्ध होगा। विदेशों में जो लोग साहित्य की रचना कर रहे हैं, वे हमेशा दोहरी पहचान में बंधे रहते हैं । जिस कारण वह न तो यहाँ  की और न ही वहाँ  की जिंदगी में हस्तक्षेप कर पाता। ’’ मैं व्यक्तिगत तौर पर राजेन्द्र यादव जी के इस विचार से इत्तफ़ाक नहीं रखता । दरअसल जड़ों की तरफ लौटने का अर्थ जड़ताओं के साथ लौटना नहीं है । जड़ों की तरफ लौटने का अर्थ अपनेपन की संवेदनाओं, मूल्यों और भावों की ओर लौटना। हिंदी ब्लागिंग के माध्यम से जिस तरह का साहित्यिक योगदान दिया जा रहा है उसे अब नकारा नहीं जाना चाहिए। कथा यूके (लंदन) के महासचिव तेजेंद्र शर्मा का स्पष्ट मानना है कि,‘‘--- साहित्य को एक देश से दूसरे देश तक पहुंचाने का जो काम वेबसाइड नुक्कड़ द्वारा किया जा रहा है, वह किसी लघु पत्रिका द्वारा संभव नहीं है। ’’ हमें यह ईमानदारी के साथ स्वीकार करना होगा कि प्रवासी साहित्य के माध्यम से हिन्दी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशेष पहचान बना रही है। भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के इस दौर में हिन्दी का नया रूप हमारे सामने आ रहा है। इस रूप के विकास में इंटरनेट, वेब मेडिया, सोशल नेटवर्किंग साइट्स और ब्लाग का महत्वपूर्ण योगदान है ।

        देश के विकास में प्रवासी भारतियों के योगदान को किसी भी प्रकार से नकारा नहीं जा सकता । 11 मार्च, 2008 को राज्यसभा में देश की तत्कालीन मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सुश्री डी.पुरन्देश्वरी ने एक उत्तर में कहा, "नासा में कार्यरत 36 प्रतिशत वैज्ञानिक भारतीय मूल के हैं। अमरीका के 38 प्रतिशत डाक्टर प्रवासी भारतीय या भारतीय मूल के हैं। माइक्रोसाफ्ट में काम करने वाले 34 प्रतिशत कर्मचारी प्रवासी भारतीय या भारतीय मूल के हैं। आईबीएम में 28 प्रतिशत, इंटेल में 17 प्रतिशत और जेराक्स में 13 प्रतिशत प्रवासी भारतीय या भारतीय मूल के कर्मचारी कार्यरत हैं।" ये आंकड़े तीन साल पुराने हैं और आज की बात करूँ तो इनमे वृद्धि ही हुई है कंही से कोई कमी नहीं आयी । ऐसे प्रवासी वर्ग की भावनाओं को हमें खुलकर स्वीकार करना चाहिए।
    जितेंद्र तिवारी प्रवासी भारतीयों के संदर्भ में लिखते हैं कि, ‘‘---- फिजी, बर्मा, मलेशिया, सिंगापुर, मारिशस, दक्षिण अफ्रीका, ट्रिनिडाड एंड टोबैगो, गुयाना और सूरीनाम में आज भारतीय समाज न केवल प्रभावी है बल्कि इनमें से कई देशों में तो भारतवंशी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी बने। कुछ वर्ष पूर्व फिजी के प्रधानमंत्री थे महेन्द्र चौधरी, ट्रिनिदाद एंड टोबैगो के प्रधानमंत्री थे वासुदेव पाण्डे (9 नवम्बर 1995 से 24 दिसम्बर 2001 तक)। छेदी जगन गुयाना के प्रथम तथा लोकतांत्रिक पद्धति से चुने गए राष्ट्रपति थे,  और तो और, जिस ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत पर राज किया, आज उसकी संसद (हाउस आफ कामन्स और हाउस आफ लाड्र्स) तक भारतीय पहुंच चुके हैं, ब्रिटिशों की तरह छल-बल से नहीं, लोकतांत्रिक पद्धति से चुनकर। न्यूजीलैण्ड में जन्मे व पले-बढ़े, भारतीय मूल के माता-पिता की संतान आनंद सत्यानंद सन् 2006 से वहां के गवर्नर जनरल हैं। वे एशिया मूल के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जो इस प्रतिष्ठित पद पर पहुंचे हैं। वर्तमान दौर में विश्व की महाशक्ति होने का दावा करने वाले अमरीका में भारतीय मूल के बॉबी जिंदल के बाद भारतीय मूल के माता-पिता की संतान निक्की हैली रंधावा अब उत्तर कैरोलीना राज्य की गवर्नर चुनी गईं हैं। निक्की हैली अमरीका के किसी प्रांत में चुनी गईं पहली महिला गवर्नर और दूसरी भारतीय मूल की गवर्नर हैं। सूचना प्रौद्योगिकी की अमरीकी घाटी (सिलिकान वैली) में शुरू हो रहे लगभग 35 प्रतिशत उद्योग भारतीयों के हैं। अमरीका में सितम्बर, 2002 में बहुराष्ट्रीय कंपनियों में कार्यरत भारतीयों द्वारा कराए गए पेटेंट्स की सूची देखिए, आपको भी विश्व गगन पर छा रही भारतीय युवाओं की प्रतिभा पर गौरव होगा-टैक्सास इंस्ट्रयुमेंट ने 225, इंटेल ने 125, सिस्को सिस्टम ने 120, आईबीएम ने 120, फिलिप्स ने 102 और जी.ई. ने 95 पेटेंट लिए। ’’
    अमरीका के सीबीएस टेलीविजन चैनल ने अपने चर्चित कार्यक्रम 60 मिनिट्स की प्रस्तोता लेस्ली स्टाल का यह कथन पूरी स्थिति को साफ करता है- ‘’ अमरीका अपने लिए तेल का आयात अरब से, कारों का आयात जापान से, टीवी का आयात कोरिया से और व्हिस्की का आयात स्काटलैंड से करता है, और हम भारत से आयात करते हैं वास्तविक कुशाग्र लोग...सबसे कुशाग्र और तेज तर्रार लोग, जो हमारे साथ हमारे विकास में भागीदार बने हुए हैं।...विज्ञान एवं तकनीकी के क्षेत्र में भारत की आईआईटी के स्नातक अपने समकक्ष अमरीकी स्नातकों को धूल चटा रहे हैं। "
    ये तमाम स्थितियाँ स्पष्ट करती हैं कि भारतवासी जहां भी हैं अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफ़ल हुए हैं । ये तमाम भारतीय, प्रवासी भारतीय के रूप में ही सही पर अपनी भाषा,और अपने लोगों से जुड़ने के लिए बेकरार रहते हैं । नार्वे के प्रवासी हिन्दी साहित्यकार और ब्लागर सुरेश चंद्र शुक्ल हिन्दी और नार्वेजी दोनों ही भाषाओं में साहित्य रच रहें हैं । इतना ही नहीं अपितु आप अपनी संस्थाओं के माध्यम से भारत से कई साहित्यकारों को प्रति वर्ष नार्वे ले जाकर उन्हें सम्मानित भी करते हैं। इस तरह दो राष्ट्रों के बीच साहित्यिक और सांस्कृतिक आदान –प्रदान का कार्य भी ये प्रवासी भारतीय अपने संसाधनों पर कर रहें हैं ।
 यूके में रहनेवली डॉ. कविता वाचक्न्वी का नाम हिन्दी ब्लागिंग जगत के लिए एक जाना-माना नाम है। तमाम सोशल नेटवार्किंग साइट्स और हिन्दी भारत तथा वागार्थ नामक अपने ब्लागों के माध्यम से आप हिन्दी में साहित्य रचने के साथ-साथ प्रवासी जीवन के कई अनुभवों को साझा करती हैं। हिन्दी के वारिष्ठ गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा की अमेरिका निवासी 56 वर्षीय पुत्री लावण्या शाह भी हिन्दी ब्लागिंग से जुड़ी हुई हैं। कनाडा निवासी  मानोशी चटर्जी के गीत भी ब्लाग जगत में खूब प्रचलित हैं। ब्रिटेन के महावीर शर्मा,अमरीका के अमरेन्द्र कुमार और कनाडा से समीर लाल जैसे हिन्दी ब्लागर काफी मेहनत और लगन के साथ हिन्दी में काम कर रहे हैं । इनके अतिरिक्त भी कई प्रवासी हिन्दी ब्लागरों के नाम गिनाए जा सकते हैं । जैसे कि-सिंगापुर से  लालजी वर्मा, ,शैलाभ सुभिशाम,दीपक वाईकर , अमरेन्द्र नारायण ।सूरीनामा से पुष्पिता । नार्वे से प्रभात कुमार, रंजना सोनी । ब्रिटेन से उषा वर्मा,गौतम सचदेव , दिव्या माथुर ,प्राण शर्मा , पुष्पा भार्गव,मोहन राणा, ललित मोहन जोशी और ऊषाराजे सक्सेना । जापान से सुरेश ऋतुपर्ण। जर्मनी से अंशुमान अवस्थी , विशाल मेहरा और रजनीश कुमार गौड़ । आस्ट्रेलिया से अनिल वर्मा,कैलाश भटनागर ,रियाज शाह ,शैलजा चंद्रा और सुभाष शर्मा । इसीतरह दुनियाँ के अनेकों देशों से प्रवासी हिन्दी ब्लागर लगातार योगदान दे रहे हैं। आज ऐसे ब्लागों की संख्या हजारों में है जो प्रवासी ब्लागरों द्वारा चलाये जा रहे हैं ।प्रवासी हिंदी ब्लागरों की एक लंबी सूची परिकल्पना के ब्लागर रविन्द्र प्रभात पहले ही दे चुके हैं। आप यह सूची http://www.parikalpana.com2009/12/2009-18.html  लिंक पर जा कर देख सकते हैं ।
                इस तरह हम देखते हैं कि हिंदी ब्लागिंग की शुरुआत से लेकर अब तक इसके विकास में प्रवासी हिंदी ब्लागरों का बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा है । आवश्यकता इसी बात की है कि हम ब्लागिंग से जुड़े प्रवासी हिंदी ब्लागरों के योगदान को सराहें और  प्रवासी हिंदी साहित्य के एक अंश के रूप में ही क्यों न हो पर प्रवासी  हिंदी ब्लाग साहित्य को भी साहित्यिक चर्चाओं के बीच उचित स्थान दिया जाय। एक ऐसे समय में जहां प्रवासी हिन्दी साहित्य ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा हो , ऐसे में मेरा प्रवासी हिन्दी ब्लागरों को लेकर नया आग्रह शायद कुछ लोगों  को ठीक न लगे, लेकिन यह समय की मांग है। और हमें समय के साथ चलना चाहिए । जब हम हिंदी के अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य की बात करते हैं तो वेब मीडिया, इंटरनेट और ब्लाग को नजरअंदाज़ करना कहाँ की समझदारी होगी ?
                                                                  
                                                                   डॉ. मनीष कुमार मिश्रा
                                                                                        प्रभारी –हिंदी विभाग
                                                                                        के.एम .अग्रवाल महाविद्यालय
                                                                                        पड़घा रोड़, गांधारी गाँव
                                                                                        कल्याण (पश्चिम), महाराष्ट्र
                                                                                   मो.-8080303132, 9324790726
                                                                                ईमेल -manishmuntazir@gmail.com  
                                                                     ब्लाग–http//www.onlinehindijournal.blogspot.com












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