Sunday 13 February 2011

क्योंकि अब भी तेरा ही सामान हूँ ./

अजीब सी आदत से परेशान हूँ 
तुम्हे  सोच -सोचकर  हैरान  हूँ 


जो था,वो सब कुछ तुम्हे दे दिया,
अब बाजार क़ी एक बंद दुकान हूँ .


अब भी बहुत याद आती हो तुम,
सोचो  तो , कितना   नादान    हूँ . 




अकेला हूँ, आज इस वलेंटाइन  डे पर ,



क्योंकि अब  भी   तेरा ही  सामान हूँ .



जब खुद के ही कातिल हो गए /Saint Valentine's Day






             जब खुद के  ही कातिल हो गए 
           मकाम सारे मुझे हासिल हो गए 

       तू  सबसे   हसीन    सपना   था  मेरा  
      अफ़सोस! दुनियादारी  में  गाफिल  हो गए 

तेरा  प्यार  था  स्नेह  के   समंदर जैसा 
   तेरे  बाद  तो  रेतीला  साहिल  हो गए 

तेरी  बातें , तेरी  जुल्फें ,तेरी   यादें  सनम 
इनमे  इतना   उलझे  क़ी   जाहिल  हो गए   

आज  फिर  जब  वलेंटाइन  डे  है  
हम  तेरी  यादों  से  बोझिल  हो गए .  
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मोहब्बत में हम भी इंसान हो गए.

किसी  पत्रिका में पढ़ा हुआ  मोहब्बत पर एक शेर आप सभी के लिए 
  सारे पेचीदा मसले आसान हो गए ,
मोहब्बत में हम भी इंसान हो गए. 
                               

या हम ही ठिकाने लग जाएँ

हाल ही  में भाई नदीम सिद्दीकी जी से मुंबई में एक कवि सम्मेलन में मुलाकात हुई. उनका एक शेर वेलेंटाइन  डे क़ी पूर्व संध्या  पर बड़ा कारगर  लगा. 


 तेरा इन्तजार करेंगे, चाहे ज़माने लग जाएँ 
 या तो तू आ जाए,या हम ही ठिकाने लग जाएँ . 

उज़्बेकी कोक समसा / समोसा

 यह है कोक समसा/ समोसा। इसमें हरी सब्जी भरी होती है और इसे तंदूर में सेकते हैं। मसाला और मिर्च बिलकुल नहीं होता, इसलिए मैंने शेंगदाने और मिर...