Saturday 4 September 2010

शबाब तेरे हुश्न का और वो अदा

शबाब  तेरे हुश्न का और वो अदा
शरारत कजरारी आखों में और चेहरे पे हया  
भरपूर जवानी खिली हुई और सादगी की क़ज़ा
लूटना ही था दिल को न था मै खुदा

क्या कहा उन आखों ने
क्या सुना मुस्कराहट की बातों में
क्या कह गयी हवा तेरा बदन छू के जों आई थी
क्या शमा महकी या मेरी हसरतें बेकाबू  थी


तेरी खनकती आवाज में कुछ जादू था
तेरी हर अदा कातिल औ तू ही मेरा साहिल था
ख़ामोशी तेरी बयाँ कर रही थी किस्से कितने
मै भी मशगूल था उसमे और बन रहे थे सपने











Friday 3 September 2010

एक वक़्त हुआ हमको जिए

आखों  के आंसूं सूखें है  
गम का अधियारा बाकी है
एक वक़्त हुआ हमको जिए
सांसों का थमना बाकी है

दुनिया को मै हार भी जाता
पर तुझको बाँहों में भरना बाकी है

जीवन को मै त्याग  भी जाता
पर अरमानो को जीना बाकी है

आखों के आंसूं सूखें है

गम का अधियारा बाकी है
एक वक़्त हुआ हमको जिए
सांसों का थमना बाकी है



Sunday 29 August 2010

आशायें कितनी रखी थी ख़ामोशी के लफ्जों से

झिझक रहे कदमों से
अनकहे शब्दों  से
आशायें कितनी रखी थी
 ख़ामोशी के लफ्जों से


सपनों की राहें बनी  थी
अभिलाषाओं की आहें हसीं  थी
साकार वो ना कर पाई
दिल की चाहें सजीं थी


                                      
                                 
बहक उठे आखों के आंसूं
द्रवित हुआ ह्रदय बेकाबू
झलक दिखी जब हाँ की बातों में
ख्वाब सजे जागी रातों में 

वो लम्हा अनमोल था कितना

वैसे जीवन का मोल है कितना
वक़्त गया वो बातें बीतीं
राहें हैं तनहाई ने जीतीं






झिझक रहे कदमों से
 अनकहे शब्दों से

आशायें कितनी रखी थी
 ख़ामोशी के लफ्जों से