Saturday 7 August 2010

वक़्त मिले चाहत कहे तो आवाज दे देना

वक़्त मिले चाहत कहे तो आवाज दे देना
अपनापन,अतरंगता  मोहब्बत साथ दे देना

अपना कहने का अधिकार दे देना 
बाँहों में भर सीने में सिमट प्यार दे देना 
लबों को लबों का साथ दे देना 
मेरी जिंदगानी को कोई सार दे देना  

वक़्त मिले चाहत कहे तो आवाज दे देना
अपनापन,अतरंगता मोहब्बत साथ दे देना


बड़ा शौक था तेरी चाहत का

बड़ा शौक था तेरी चाहत  का
इक  जूनून था तेरी मोहब्बत  का 
खुद को न्योछावर करता तेरे  एक इशारे पे
पर तुझे यकीं  नहीं था मेरी शहादत  का









Wednesday 4 August 2010

विषय-पीच.डी धारकों की नेट /सेट से छूट के सम्बन्ध में .



manish mishra 4 August 2010 22:09
To: vc@fort.mu.ac.in
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M.G.Road, Fort,
Mumbai-400 032
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         +91 22 2265 2819,Ext: 101
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 +91 22 2267 3569
Email: vc@fort.mu.ac.in



सेवा में ,
    माननीय कुलपति जी
    मुंबई विद्यापीठ
    मुंबई 

                                       विषय-पीच.डी धारकों की नेट /सेट से छूट के सम्बन्ध में .
 
माननीय महोदय,
                    यु.जी.सी. के नियमावली के अनुसार जो पीच.डी. हैं उन्हें नेट /सेट से छूट दी गई है. इस सम्बन्ध में महाराष्ट्र के ही अमरावती विद्यापीठ ने तो नोटिफिकेसन भी निकाल दिया है.
                     लेकिन मुंबई विद्यापीठ ने इस सन्दर्भ में कोई पहल नहीं की है,इसका नुक्सान यहाँ के पीच.डी धारकों को हो रहा है. उन्हें पैनेल  इंटरविव के समय योग्य नहीं माना जा रहा है.
                                 आपसे अनुरोध है कि आप इसमें दखल देते हुवे कोई आदेश जल्द से जल्द देने की कृपा करें . जिससे विद्यार्थियों का नुक्सान ना हो .
  
  धन्यवाद 
                                                                                                                                                           आपका 
                                                                                                                                             डॉ.मनीष कुमार मिश्रा
                                                                                                                                             मो-९३२४७९०७२६
 संलग्न 
१-अमरावती विद्यापीठ का नोटिफिकेसन 
 

Tuesday 3 August 2010

मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे

मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे 
दे सके तो मेरे सपनों को कोई आकार तो दे दे  
चाहत नहीं बची किसी चाह की कोई
मेरे बिखरे वजूद को कोई राह तो दे दे

सूखे ख्वाबों का पेड़ हूँ हरियाली के आँगन में

दे सके तो आहों की राख तो दे दे
जिंदगी बिताने को एक आस है बहुत
मेरी मोहब्बत को कोई विचार तो दे दे

गुजर रही तेरी जिंदगी बड़े सुखो  आराम से
इस जन्म का न सही अगले जन्म का होंकार तो दे दे
मोहब्बत न सही कोई तकरार तो दे दे
मेरे बिखरे वजूद को कोई राह तो दे दे










Sunday 1 August 2010

क्या आप कभी मेरी मोहब्बत के पात्र रहे हैं

क्या आप कभी मेरी मोहब्बत के पात्र रहे हैं
क्या आप कई वर्ष मेरे आस पास रहे हैं

क्या आपने मेरी आखों में समुन्दर तलाशा था
क्या आपने मेरी जुल्फों में निशा के मंजर को ढाला था

क्या आपने चूमा था मेरा ललाट अधिकार से कभी 
क्या आपने सींचा था मुझे अपने प्यार से कभी 

क्या आपके ओठों ने मेरे लबों की लाली बडाई थी 
क्या मेरे उफनते सीने को अपने आलिगन में समायी थी 

क्या मेरी रातें तेरी बाँहों में महकी थी 
क्या तुम हो वही जिसकी आगोश में मेरी सुबहें बहकी थी 

जाने दो गुजरे वक़्त को अब याद क्या करना 
जाने दो तुम्हे पहचान के अब अहसान क्या करना 

जों गुजर गया वो भुत है अब नया मेरा मीत है 
भविष्य नया तलाश कर यादों का कभी ना साथ कर 
सीख दे गयी वो बात तो पते की थी 
कैसे बदलता दिल मेरा वो मेरे धड़कन में थी  


ठहरा हुआ जों वक़्त हो उससे निकल चलो

ठहरा हुआ जों वक़्त हो उससे निकल चलो
गम की उदासियों से हंस कर निपट  चलो


गमनीन जिंदगानी को खो कर निखर चलो
कठिनाई के दौर से डटकर निपट चलो


बिखर रहा हो लम्हा यादों में किसी के
सजों कर कुछ पल दिल से निकल चलो


जिंदगी गुजर रही जों उसकी तलाश में
जी भर के तड़प के मुस्कराते निकल चलो