Saturday 3 July 2010

मेरी आखों को नम बनाये रखा /

बुलाये रखा , उलझाये रखा ,

मेरे दिल के जख्मों को सलीके से ताज़ा बनाये रखा ;

मुस्कराया भी मुझको हँसाया भी ,

पर मेरे भावों को तुने पराया रखा ,मुझको सताए रखा ;

मरहम लगता हर बार तू एक नए अंदाज से ,

पर रिसते घावों में कांटा चुभाये रखा ;

फूलों की खुसबू को मेरे पास बनाये रखा ;

बड़ी खूबसूरती से तुने मुझे अपनी जिंदगी के किनारे लगाये रखा ;

मेरे ओठों पे अपना नाम बनाये रखा ;

मेरी आखों को नम बनाये रखा /

Thursday 1 July 2010

फितरत नहीं थी वैसा बना डाला ,

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न फितरत बदली न चाहत बदली ,
बदलते वक़्त ने करवट न बदली ;

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न व्यवहार बदला न संस्कार बदला ,
बदला वक़्त ने सिर्फ अभाव बदला ;

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फितरत नहीं थी वैसा बना डाला ,
मोहब्बत ने न जाने कैसा बना डाला ;
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सहज मासूम से ख्वाब थे मेरे ,
उन्हें आखों से बहता काजल बना डाला ;
चल रही थी जिंदगी जों सहज अंदाज से ,
तेरी इनायतों ने उसे हलाहल बना डाला ;
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फितरत नहीं थी वैसा बना डाला ,
मोहब्बत ने न जाने कैसा बना डाला /

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Wednesday 30 June 2010

देश का गृहमंत्री हिंदी नहीं है जानता ,

उदघोष कर रहा नक्सल यहाँ हर रोज किसी के खून से ,
सो रहा है मंत्री मंडल देश का बड़े जूनून से ,
बहस नहीं खत्म को रही निपटे किस तरह नक्सल वाद से ,
क्या करे चिदंबरम कब जुड़े वो जमीनी यथार्थ से ,
न बोल पाया जों आम लोंगो की भाषा आज तक ,
वो क्या कहेगा गर मर रहा आम आदमी यूँ नक्सल वार से /
देश का गृहमंत्री हिंदी नहीं है जानता ,
इससे बड़ा दुर्भाग्य मै कुछ नहीं मनाता /
छुद्र है मानसिकता जिनंकी वो देश चला रहे ,
प्रान्त को देश से बड़ा वो मान रहे /
अंगरेजी स्वीकार्य है भले गुलामी का वो पर्याय है ;
हिंदी से डरना दर्शा के देश को उजाड़ रहे /
 

जिंदगी गुजरती रही , यादें संवरती रही ,

जिंदगी गुजरती रही , यादें संवरती रही ,
मोहब्बत को करीबी न हुई हासिल ,
तेरे नफ़रत में भी न हुआ शामिल ;
मेरी जिंदगानी तेरे बिन सिसकती रही /

किसी से बेवफाई का न गुनाहगार था,
किसी की रुलाई का ना जिम्मेदार था,
न बना सका तुझको मै अपना ;
बस इतना ही मेरा दुर्व्यवहार था /

Tuesday 29 June 2010

टूटता दिल आवाज क्या करता

टूटता दिल आवाज क्या करता ,

बहते आंसुओं को हिसाब क्या कहता ;

मचला तो था मेरा भी जिगर कभी ,

उसकी बेवफाई का जवाब क्या कहता /

Sunday 27 June 2010

मेरे अपने यूँ मुझे संवारते रहे /

कमियां तलाशते रहे ,गलतियाँ निकालते रहे ,

थे वो मेरे अपने जों मेरी बखिया उखाड़ते रहे /

कभी कुछ अच्छा कहा हो याद नहीं ,

मेरे अपने यूँ मुझे संवारते रहे /

दिग्भ्रमित हैं या वे किसी हीनता से ग्रस्त हैं ,

न जान पाया आज तक क्यूँ मेरे पर काटते रहे ;

न अपनापन , दुलार , न अहसास , संबल औ विश्वास दे सके ,

फिर क्यूँ मुझसे आहत होने का आडम्बर बांटते रहे ;

कमियां तलाशते रहे ,गलतियाँ निकालते रहे ,
थे वो मेरे अपने जों मेरी बखिया उखाड़ते रहे /

न उत्साह दिया न साहस न उनके होने का बल ,

पर अपनी विफलताओं का सेहरा मेरे सर बाँधते रहे ;

थे मेरे अपने जों मेरे पैरों तले की जमीं काटते रहे ;

मेरा अच्छा किया हो याद नहीं ,मेरे अपने यूँ ही मुझे संवारते रहे /

कमियां तलाशते रहे ,गलतियाँ निकालते रहे ,

थे वो मेरे अपने जों मेरी राहों में कांटे बिझाते रहे /

उज़्बेकी कोक समसा / समोसा

 यह है कोक समसा/ समोसा। इसमें हरी सब्जी भरी होती है और इसे तंदूर में सेकते हैं। मसाला और मिर्च बिलकुल नहीं होता, इसलिए मैंने शेंगदाने और मिर...