Wednesday 28 October 2009

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

तुझे जरूरत ना पड़ती थी कहने की ,

तेरे अहसासों पे अमल कर देता था मै;

तेरी आखों में बुने सपनों को ,

अपने भावों से सजों देता था मै ;

तेरी राहों के काटें चुनता ,

तेरी मधुभासों में खोया रहता था मै ;

तेरी खुशियों को तुझसे ज्यादा सजोता ,

तेरे आंसुओं को अपनी आखों से रो लेता था मै ;

इन यादों से कैसे किनारा कर लूँ ,

गर तुझसे मोहब्बत एक गलती थी ;

उसे तोड़ कर गलती कैसे दोबारा कर लूँ ?

तेरी खुशियाँ अब भी मुझे प्यारी हैं ,

तुझे मिल के उन्हें कैसे गवांरा कर लूँ ;

तेरा आभास अब भी मेरे धड़कनों में शामिल है ,

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

Monday 26 October 2009

इक चाहत है ख़ुद से जुदा होने की ;

इक चाहत है ख़ुद से जुदा होने की ;

मोहब्बत में खुदा होने की ;

जी ना सके संग तेरे क्या हुआ ;

तमन्ना है तेरे इश्क में फ़ना होने की ;

मेरे अहसास अपने दिल में तू समेट ना सकी ;

मेरी दुरी को मोहब्बत में लपेट ना सकी ;

क्या कहूँ तेरे अरमां औ तेरी जरूरतों को ;

कैसे तू प्यार के जज्बे को सहेज ना सकी ?

तू गर्वित है अपने हालात पे ;

अपनी सफलता और बड़ती आगाज पे ;

क्या कहूँ मोहब्बत तेरी बिखरती जवानी पे ;

कैसे वो मेरी आखों में आंसुओं को रोक ना सकी ?