Friday 19 June 2009

वो तेरा अतीत हूँ /

अंत हूँ ,अनन्त हूँ ;

आकर्षण हूँ , आमंत्रण हूँ ;

जो तू वश में ना कर सकी ,

वो तेरा अत्यंतर हूँ /

अरस्तु हूँ , अगस्त्य हूँ ;

अनुगामी हूँ , अभ्यस्त हूँ ;

जो तू ना पढ़ सकी ;

वो तेरा ही अर्थ हूँ /

अमूर्त हूँ , अभिभूत हूँ ;

अविरक्त हूँ , अभिव्यक्ति हूँ ;

जिसे ना तू जीत सकी ,

वो तेरी आशक्ति हूँ /

आगाज हूँ , आवाज हूँ ;

आस हूँ , अनायास हूँ ;

जिसे ना तू मिटा सकी ;

वो तेरा अहसास हूँ /

अभिज्ञान हूँ , अभिमान हूँ ;

आकार हूँ , अविकार हूँ ;

जो तू न संभाल सकी ,

वो तेरा अधिकार हूँ /

अमान्य हूँ , अवमान्य हूँ ;

अरीती हूँ , अप्रिती हूँ ;

जो स्वीकार ना कर सकी ,

वो तेरा अतीत हूँ /

Thursday 18 June 2009

वो तेरा अतीत हूँ /

अनिभिज्ञ हूँ , अवरुद्ध हूँ ;

अदृश्य हूँ , अदृष्ट हूँ ;

अभीष्ट नही जो तुझे ;

वो तेरा अधिष्ट हूँ /

अनुरोध हूँ , अवरोध हूँ ;

अज्ञान हूँ , अनजान हूँ ;

जो पुरा ना हो सका ,

वो तेरा अरमान हूँ /

अप्राय हूँ , अभिप्राय हूँ ;

आवेश हूँ , अवशेष हूँ ;

मन में तेरे छुपा हुआ ,

उलझनो का आक्रोष हूँ /

अमान्य हूँ , अवमान्य हूँ ;

अरीती हूँ , अप्रिती हूँ ;

जो स्वीकार ना कर सकी ,

वो तेरा अतीत हूँ /

Wednesday 17 June 2009

तेरा मुझसे क्या रिश्ता था

तेरा मुझसे क्या रिश्ता था ,
मेरा तुझसे क्या रिश्ता है ;
सब रिश्ता भूल गया /
याद हैं बस आखों के आंसू ;
सारा किस्सा भूल गया /
रातें आखों में कटी ;
रातों का अँधियारा भूल गया /
राहों में उलझा हूँ दिन भर ;
घर का रास्ता भूल गया /
बातों में उनके बिरहा होता था ,
आखों में मदिरालय ;
बहकूँ कैसे यार मेरे ;
मदहोशी ही भूल गया /

यूं . जी .सी का अत्याचार

यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीसन कब कौन सा नियम ला देगी ,यह आजकल उसे भी नही मालूम। इसकी कीमत जिसे चुकानी पड़ रही है ,उसकी चिंता यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीसन को नही है । अब बात NET/SLET की ही ले लीजिये । कभी यह की UNIVERSITY LECTURERSHIP के लिये इन EXAMS को पास करना अनिवार्य है तो कभी PH।D/M.PHIL को छूट मिल जाती है । इस पर भी वह कायम नही रह पा रही है ।
अब सुनने मे आ रहा है की फ़िर से M.PHIL की मान्यता ख़त्म होने जा रही है । अब कोई इनसे यह पूछे की आप के आदेश के बाद जिन लोगो ने M।PHIL किया या कर रहे हैं अब उनका क्या होगा ?


UGC वालो इसका क्या जवाब दोगे ?

गम नही दूरियों का

गम नही कुछ दूरियों का ,
वक्त की मजबूरियों का ;
जब मिलन की आग हो ,
जलते बदन में एक प्यास हो ;
मन में एक मीठा भास हो /
सुनी रातें अहसास बडाती हैं ;
तेरा आभास दिखाती हैं ;
उगता सूरज एक विस्वास दिलाता है ;
मन अपना ही कयास लगाता है ;
जब दिल बेकरार हो ;
अलग मजा है मजबूरियों का ;
अगर बेइंतहा प्यार हो ;
उदासियों में भी आस हो /

Tuesday 16 June 2009

पहली मुलाक़ात -----------------------

आज उनसे पहली मुलाक़ात हुई,
जो होनी थी ,वही छोड़ सब बात हुई ।

जो परी ख्वाबो मे आती रही अब तक,
उसके पहलू मे ही आज रात हुई ।

यूँ तो चोरी दोनों का कुछ-ना -कुछ हुआ पर,
खुश हैं दोनों ही,अजीब वारदात हुई .

Monday 15 June 2009

तुम आओगे शहर में , मै न होऊँगा /

तुम आओगे शहर में ,
मैं ना होऊँगा ;
न उलझन तुम्हें होगी ,
ना मै रोऊँगा /
कुछ यादें टटोलेंगी,
कुछ पल कचोटेंगे ;
अपनो का साथ होगा ,
हँसी का कारोबार होगा ;
न होगी झिझक मन में ,
जब मै ना होऊँगा ;
खुशियों से भरी सुबहें होंगी ,
भावों से खिली रात ;
न होगी टीस मन में ,
ना होगी इच्छाओं की आस ;
न मचलेंगे सपने तेरे ,
ना बडेगी मेरी प्यास ;
तुम आओगे शहर में ,
मैं ना होऊँगा ;
न उलझन तुम्हें होगी ,
ना मै रोऊँगा /

वो आए शहर में ,

वो आए शहर में ,
हमें अनजान रख के चल दिए ;
समझते हैं हाले दिल तेरा ए हँसी ,
किसके साथ आए औ क्यूँकर चल दिए ;
आदतें जाती नही है ,
राहें बदल जाती हैं ;
बदन पिघलाते थे ,
दिल सुलगा के चल दिए /
वो शहर में आए ,
हमें अनजान रख के चल दिए /

Sunday 14 June 2009

वह प्यार को ----------------------

वह प्यार को नया मोड़ देता है ,
रुमाल अपना मेरे पास छोड़ देता है ।

जात-पात ऊँच-नीच की गागर को ,
अक्सर कोई कन्हाई फोड़ देता है ।

हर एक नई मुलाकात के साथ ,
वह नया रिश्ता जोड़ देता है ।

तेवर बगावती हैं इसके बडे ,
मोहबत्त हर रिवाज को तोड़ देता है ।

उज़्बेकी कोक समसा / समोसा

 यह है कोक समसा/ समोसा। इसमें हरी सब्जी भरी होती है और इसे तंदूर में सेकते हैं। मसाला और मिर्च बिलकुल नहीं होता, इसलिए मैंने शेंगदाने और मिर...