Friday 5 June 2009

फरिश्तों का नसीब कहाँ की इन्सान का गुन पाए ;


फरिश्तों का नसीब कहाँ की इन्सान का गुन पाए ;
इन्सान खुदा की चाहत है ,वो फरिस्ता क्यूँ बन जाए ;
आसमान सजदा करता है जमीं की धुल का हरदम ,
बिखरे कितना भी, अपनी पहचान कहाँ से वो पाए ?
जो सिर्फ़ अपनी ही कहते हैं ,वो प्यार का जज्बा क्या जाने ,
इश्क नही उनके बस का जो जान संजोते रहते हैं ;
चाँद की किस्मत फूटी है ,पपीहे को ना सुन पाए ;
पथरीली मिटटी क्या जाने ,फूलों की खुसबू किसको कहते हैं /

Thursday 4 June 2009

जब-जब सावन बरसता है -------------------------------------

जब -जब सावन बरसता होगा
मेरा यार कितना तरसता होगा ।

छत पर अकेले हर शाम को ,
वह न जाने क्या-क्या सोचता होगा ।

सब पूछेंगे उदासी का सबब उससे,
मगर वह कुछ नही कहता होगा ।

बहुत ही उदास होता होगा वह ,
जब रात अकेले मे चाँद देखता होगा ।

चंदन सा शीतल बदन उसका यारों ,
sardiyon ki raat mae jaltaa hoga .

Tuesday 2 June 2009

बादलों की प्यास हूँ मै

बादलों की प्यास हूँ मै ,
जो पूरी न हुयी ,वो आस हूँ मै ;
फूलों की घाटी का ,
दल से बिछडा गुलाब हूँ मै ;
सुबह का पूरा न हुवा ;
वो अधुरा ख्वाब हूँ मै /

उज़्बेकी कोक समसा / समोसा

 यह है कोक समसा/ समोसा। इसमें हरी सब्जी भरी होती है और इसे तंदूर में सेकते हैं। मसाला और मिर्च बिलकुल नहीं होता, इसलिए मैंने शेंगदाने और मिर...