Showing posts with label small hindi short stories. Show all posts
Showing posts with label small hindi short stories. Show all posts

Friday 9 April 2010

बोध कथा १९ : बहेलिया आएगा ,जाल बिछाएगा -------------------------------

बोध कथा १९ : बहेलिया आएगा ,जाल बिछाएगा -------------------------------
 ********************************************************** 
                                                    एक बार क़ि बात है, नीलगिरी के जंगलों के पास के गाँव में एक बहेलिया रहता था. पक्षियों को पकडकर उन्हें बेचना ही उसका काम था. वह अपने काम में बड़ा निपुण था. जाल लगाने और पक्षियों को फसाने में वह माहिर था. 
                                                  एक दिन जब वह जाल बिछा कर बैठा था तो जाने कंहा से एक तोता जाल पर बिखेरे दानों के लालच में वंहा आ गया और जाल में फंस गया. जब वह बहेलिया उस तोते को लेकर अपने घर क़ि तरफ जा रहा था,तभी एक साधू उसे मिले.तोते को तडपता हुआ देख कर उन्होंने बहेलिये से कहा क़ि ,''अरे बहेलिये, कई दिनों से मुझे एक तोते कई तलह थी.मैं उसे पालना चाहता था.क्या तुम यह प्यारा सा तोता मुझे दोगे ? मैं मुफ्त में नहीं लूँगा .तुम्हे इसके बदले उचित मूल्य भी दूंगा .'' 
                                       साधू क़ी बात सुनकर बहेलिया बड़ा खुश हुआ .उसे तो तोता बेचना ही था. सो उसने उचित मूल्य लेकर तोता साधू को दे दिया.तोता लेकर साधू बाबा अपने आश्रम पहुंचे. और उन्होंने निर्णय लिया क़ी वे तोते को शिक्षित करेंगे ,जिससे यह तोता जंगल के अन्य पक्षियों को भी जागरूक कर सके. फिर क्या था !,साधू  जी ने उस तोते को रटाना शुरू किया क़ि-बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे   


                                        अब तोता रोज यही वाक्य सुन-सुन कर उसे बोलने लगा .वह हमेशा यही बोलता रहता क़ि --
              बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे  
                            
              बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे  -
  
               बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे   

      साधू को यकीन हो गया क़ि अब तोता पूरी बात सीख गया है. उन्होंने तोते को जंगल में वापस छोड़ने का निर्णय लिया. तोता जंगल में जा कर खुश था. उसने लगभग जंगल के सभी पक्षियों को यह रटा दिया क़ि -
          बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे  
              जब यह बात बहेलिये को पता चली तो वह बड़ा निराश हुआ. उसे लगा क़ि अब कोई भी पक्षी उसके जाल में नहीं फसेंगे. लेकिन फिर भी वह जंगल में गया और उसने पहले क़ी ही तरह जाल बिछाकर उसपर दाने ड़ाल दिए. थोड़ी देर में ह एक तोता आकर दाने खाने लगा.उसके पीछे पूरा का पूरा झुण्ड चला आया. बहेलिया    बड़ा खुश हुआ. वह जल्द ही सभी तोतों को समेटकर ले जाने लगा.वह मस्ती से चला जा रहा था और सभी तोते वही रट लगाये हुवे थे क़ि-
                       
               बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे  
                बहेलिया आएगा,जाल बिछाएगा ,दाना डालेगा ,पर जाना मत ;वरना पकडे जाओगे  

         इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ि हमे सिर्फ किसी बात को तोते कीतरह रटना ही नहीं चाहिए अपितु उसका अर्थ भी समझना चाहिए. ज्ञान वही है जो समझ लिया जाय ,रटी  हुई विद्या जादा उपयोगी नहीं होती . किसी ने लिखा भी है क़ि -----                '' समझ -बूझकर ज्ञान को ,करना आत्मसाथ  
                 वरना वक्त पड़ेगा जब,तब मलोगे केवल हाथ ''


    इस तोते क़ी तस्वीर मुझे parrotarchive.blogspot.com/ से प्राप्त हुई है. इसपर मेरा कोई कॉपी राईट नहीं है              

Tuesday 6 April 2010

बोध कथा १७ : नमकहराम

बोध कथा १७ : नमकहराम
 *******************************
                                राजा तेजबहादुर सिंह को शिकार का बड़ा शौख  था. वे न्यायप्रिय भी थे. जनता का ख़याल अपने परिवार से भी बढ़ कर रखते थे. वे अन्याय और अत्याचार के घोर विरोधी थे. उनके सारे मंत्री किसी भी गलत काम को करने से डरते थे. राज्य पूरी तरह से  संपन्न था.  
                                 राजा एक बार हमेशा क़ी तरह ही जंगल में  शिकार खेलने के लिए गए.दिन भर जंगल में कड़ी मेहनत करने के बाद वे एक हिरन का शिकार करने में कामयाब हुवे. सैनिक जब हिरन को पकाने क़ी तैयारी कर रहे थे,तभी उनको ज्ञात हुवा क़ि वे अपने साथ नमक लाना तो भूल ही गए हैं. एक सैनिक राजा के पास आकर इस बात क़ी सूचना देता है. राजा दो पल चुप रहे ,फिर जेब से एक सोने क़ी अशर्फी निकाल कर सैनिक को देते हुवे बोले,''कोई बात नहीं.तुम पास के गाँव में जाओ और किसी भी भी घर से नमक मांग लाओ .याद रहे ,जिसके पास से भी नमक लेना उसे नमक के मूल्य स्वरूप ये एक सोने क़ी अशर्फी दे देना .''
                           राजा क़ी बात सुनकर साथ आये मंत्री को आश्चर्य हुवा. वे बोले ,''महाराज,आस -पास के गाँव भी हमारी सत्ता के ही अंदर हैं. थोड़े से नमक के लिए मूल्य चुकाने क़ी क्या जरूरत है.? कोई भी गाँव वासी खुशी-ख़ुशी  नमक यूं ही दे देगा.फिर ये अशर्फी क्यों ?'' 
                              मंत्री क़ी बात सुन कर राजा मुस्कुराये,फिर बोले ,''मंत्री जी, बात समझने क़ी कोशिस कीजिये .हम यंहा के राजा हैं. अगर हम अपनी प्रजा का नामक यूं ही खा  लेंगे तो हमारे लोगों को नमकहराम बनने में कितना समय लगेगा ? हम अपने लोगों के लिए कोई गलत उदाहरण नहीं बनना चाहते .''
                             राजा क़ी बात मंत्री जी की समझ में आ गयी. और वे राजा क़ी जयजयकार करने लगे. 
 इस कहानी से हमे यह सीख मिलती है क़ि- 
''हमे सिर्फ आदर्शों क़ी बात नहीं बल्कि अपने जीवन में उसे उतारना भी चाहिए.सिर्फ व्यवस्था को दोष देने से काम नहीं चलेगा,हमे अपने अस्तर पर उसे बदलने की कोशिस भी करनी चाहिए.''  
 किसी ने लिखा भी है क़ि ---------------------------------
                         '' सिर्फ उपदेश नहीं ,आचरण भी वैसा चाहिए 
                  हमे खुद अपनी बातों का,मिसाल होना चाहिए '' 
 

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद  जहां  मैपल के पेड़ों की कतार  किसी का भी  मन मोह लें। तेज़ रफ़्तार से भागती हुई गाडियां  ...