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Thursday 8 December 2011

न दूरियां ना इतिहासों की बात थी यूँ .

परछाइयों का  साथ  है  यूँ , 
न  अकेलापन  न  कोई  साथ  है  यूँ  ,
चंद  शब्दों  अहसासों  की  बात  थी  यूँ ,
न  दूरियां  ना इतिहासों की बात थी  यूँ .
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यादें  कुछ  धूमिल  है  खुशियाँ  रिमझिम  है  ,
गुजरे  वक़्त  के  कारवां  में  कितनी  हकीकते  गुमसुम  है  ,
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शरारत  तू  इसे  कह  ले , 
इबादत  तू  इसे  कह  ले ,
चल  ज़माने  की  गर  रश्मों  से  ,
  बेगैरत तू  इसे  कह  ले  ,
मोहब्बत  है  तू  मेरी  , 
चाहत  तू  इसे  कह  ले  ,
रिश्तों  की  बंदिशों   में  हो  उलझे  ,
जरूरत तू इसे  कह  ले .
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Monday 5 December 2011

बड़ी शिद्दत से बैठा वो ताकता रहा

बड़ी शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा  ,

अपने  बच्चों  द्वारा  मात पिता  की  बेइज्जती   बैठा  सराहता  रहा  ,
बड़ी शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा

शायद  वो  लफ्ज  उसके  थे
 मुंख   से  बच्चों  के  निकले  थे ,
  भाव  उसके  मन  के  उसके  बच्चों  ने  कहे  थे  ,

चुपचाप  बैठा  वो  ताकता  रहा  .
 उम्र  दराज  पिता  से  हो  रही  बद्दतमीजी को  निहारता  रहा  ,
 बड़ी शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा


पिता  के  चंद बसंत  ही  बचे  हो  ,
अब क्या लेने जैसा जो बचा हो , 
और  कुछ  दे  सके  उन  बुड्ढी  हड्डियों  में  दम  कहा ,
बच्चों  संग  अभी  बरसों  पड़े  है ,
 इस  स्वार्थ  में  खुद  को  पाता  रहा  ,
बड़ी शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा

अब  मन  उसका  उसको  कुरेद  रहा  ,
भावो  तले  अपनी  कायरता  समेट  रहा  ,
दोष  को   औरों  के माथे पे  फोड़  रहा  ,
शायद  अपना  भविष्य  देख  रहा  ,

 बच्चों  से  क्या  वो  उम्मीद  रखे  ,
रह  जिस  पे  आज उन्हें  टोका  नहीं ,कल  उसपे  नहीं  आएगी  कैसे  ये  तस्दीक  रखे  ,

अपनी  कायरता  से  अब  वो  क्या  उम्मीद  रखे .
लफ्जों  की  जौदुगरी  से  खुद  को अपनी  नज़रों  में  निचे  गिरने  से  कैसे  दूर  रखे  ,
अब  कैसे  वो  अपने  चहरे  पे  अपनी अच्छाई का  झूठ  रखे .

बड़ी  शिद्दत  से   बैठा  वो  ताकता  रहा  था  ,
अपनी  ही  जड़  को  अपने  हाथों   काटता  रहा  था  .
बड़ी  शिद्दत  से  बैठा  वो  ताकता  रहा  था  /

Wednesday 2 November 2011

पथरीली पगडंडी पे काटों से राहत है /

न गम ही है तेरा , न तेरी ख़ुशी है ,
न आखों में आंसू , न मुख पे हंसी है ;
न मंजिल की चाहत , न राहें थमी  हैं ;
कैसी जिंदगानी ये कैसी कमी है  /

विस्मित अँधेरा है ,साये ने घेरा है 

परछाई है व्याकुल अँधेरा ही अँधेरा है ;

तारो की टिमटिमाहट है कैसी ये चाहत है ,

पथरीली पगडंडी पे काटों से राहत है /

Monday 31 October 2011

आखों में तेरे खोया हूँ अब तक,

आखों में तेरे खोया हूँ अब तक,
कितनी ही रातें न सोया हूँ  अब तक ,

जागे हुए सपनों की बातें करूँ क्या ,
न पूरी हुई मुलाकाते वो कहूँ क्या ,

बाँहों का घेरा था
कितना अकेला था
खिलता अँधेरा था
तन्हायी  ने  घेरा था

यादें महकी थी
आहें बहकी थी
गमनीन सीरत थी
तू बड़ी खुबसूरत थी

फिजा गुनगुनायी थी
चाहत सुगबुगाई थी
तू मन मंजर पे छाई थी
तू न मेरी हुई न परायी थी

  किस्से अधूरे हैं
वाकये न पूरे हैं
जीवन के लम्हे है
हंसते और सहमे है

Thursday 25 November 2010

जिंदगी तुझमे ही हूँ खोया सुबह हो या शाम

बड़ा सुख है तेरी आगोस में ऐ जिंदगी 
इन हवाओं में मन की सदाओं तू है  ऐ जिंदगी 
हकीकते नागवार हो तकलीफें हजार हो
मेरी हर साँस का तुम  ख्वाब  हो ऐ जिंदगी   

उजला आसमान  औ हवाएं मध्यम
या काली घटायें औ बरसती सरगम 
उत्तेजित  सूरज या मुस्काता चाँद
जिंदगी  तुझमे रमता मन सुबह हो या शाम

Friday 19 November 2010

पर मिल ना पाया जिंदगी का फलसफा ,

कुछ  आंसू  बहे  कुछ  दिल पिघला  , पर  मिल  ना  पाया  जिंदगी  का  फलसफा  ,
तड़पते  रहे  अरमान  बेचारे ,
नसीब  ही  है  शायद   कुछ  ऐसे   हमारे

Friday 8 October 2010

दिल कह रहा पुकार लूँ तुझको

दिल कह रहा पुकार लूँ तुझको
रेशमी बालों को सँवार दूँ फिर से
अहसास कहे है तेरी तनहाई
मौसम ने ली है फिर अंगडाई
ह्रदय भ्रमित है किस राह को जावे
क्या कर दे की प्यार को पावे
साँस रुकी है पल स्थिर है
नम आखें और ह्रदय व्यथित है 
 क्या कहूँ मै तुझको या चुप बैठूं
थामू मै धड़कन या सपनों को बहकूँ 
निहार रहा बंद आखों से तुझको 
आंख खोल क्या मै तुझको देखूं 
दुविधा है फैली चहुँ ओर 
किस बंधन से बंधी है डोर 
चाह ना छोड़े अपनी आशा 
तू ना बदले अपनी भाषा 
राह चल रही औ मै स्थिर हूँ 
भाव तेरा फिर भी काफ़िर हूँ ?
दिल कह रहा पुकार लूँ तुझको

रेशमी बालों को सँवार दूँ फिर से





 

Saturday 18 September 2010

उम्र बड़ी आशाएं घटी

उम्र बड़ी आशाएं घटी
कुछ पल मुस्काए कुछ आंसू लाये
कभी सजी जीवन  की सरगम
कभी सताए दुःख औ क्रंदन
एक जीवन में  जिए हम कितने जनम
घटती सांसे औ बड़ता बंधन

Friday 3 September 2010

एक वक़्त हुआ हमको जिए

आखों  के आंसूं सूखें है  
गम का अधियारा बाकी है
एक वक़्त हुआ हमको जिए
सांसों का थमना बाकी है

दुनिया को मै हार भी जाता
पर तुझको बाँहों में भरना बाकी है

जीवन को मै त्याग  भी जाता
पर अरमानो को जीना बाकी है

आखों के आंसूं सूखें है

गम का अधियारा बाकी है
एक वक़्त हुआ हमको जिए
सांसों का थमना बाकी है



Monday 23 August 2010

जख्म भरने है लगा कोई नया तू घाव दे दे

दर्द सहन होने लगा कोई नया अभाव  दे दे
जख्म भरने है लगा कोई नया तू घाव दे दे

सूखे आखों के आंसूं
दिल चिचुक गया प्यास से
सांसे ना उखड़ी अब तलक
तू नयी कोई फाँस दे दे

धड़कन है मध्यम आस भी नम
बोझिल है आहें आभास भी कम  
संभल रहे लड़खड़ाते कदम है
छंट रहे कितने भरम है
अब भावों को नया भूचाल दे दे
तकलीफों को नयी चाल दे दे
 जिंदगानी  को बिखराव  दे दे
राहों को कोई  भटकाव दे दे


दर्द सहन होने लगा कोई नया अभाव दे दे

जख्म भरने है लगा कोई नया तू घाव दे दे

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद  जहां  मैपल के पेड़ों की कतार  किसी का भी  मन मोह लें। तेज़ रफ़्तार से भागती हुई गाडियां  ...