Showing posts with label hindi kavita. Show all posts
Showing posts with label hindi kavita. Show all posts

Thursday 15 December 2011

जज्बातों को जब्त किये जाता हूँ ,

जज्बातों  को जब्त किये जाता हूँ ,
स्याह रातों को सर्द किये जाता हूँ ,
मगरूर हो महरूफ हो मुकद्दर की तरह ,
तेरी रवायतों को तर्क  दिए जाता हूँ ,
बेवफा हो नहीं वफ़ा ना कर सके तुम ,
तेरी उलझनों को अर्थ दिए जाता हूँ ,
मोहब्बत को कमजोरी समझ बैठे हो ,
चाहत को खुदा को अर्ध्य किये जाता हूँ /


Thursday 8 December 2011

न दूरियां ना इतिहासों की बात थी यूँ .

परछाइयों का  साथ  है  यूँ , 
न  अकेलापन  न  कोई  साथ  है  यूँ  ,
चंद  शब्दों  अहसासों  की  बात  थी  यूँ ,
न  दूरियां  ना इतिहासों की बात थी  यूँ .
===============================
 
यादें  कुछ  धूमिल  है  खुशियाँ  रिमझिम  है  ,
गुजरे  वक़्त  के  कारवां  में  कितनी  हकीकते  गुमसुम  है  ,
=========================================== 
शरारत  तू  इसे  कह  ले , 
इबादत  तू  इसे  कह  ले ,
चल  ज़माने  की  गर  रश्मों  से  ,
  बेगैरत तू  इसे  कह  ले  ,
मोहब्बत  है  तू  मेरी  , 
चाहत  तू  इसे  कह  ले  ,
रिश्तों  की  बंदिशों   में  हो  उलझे  ,
जरूरत तू इसे  कह  ले .
============================

Tuesday 25 January 2011

गम ही दे पर दे इन्तहा वो भी ,

गम  ही  दे पर दे इन्तहा वो भी ,
खुशियों  पे तेरा अब बस नहीं
चाहा है टूट कर जिसको
 मिटा दे हस्ती गम दे तू ही

दर्द  का मेला चाहूं तुझसे
तकलीफों का झोला चाहूं तुझसे
चाहत का क्या है वो तू कब का भूली
ग़मों का लम्हा चाहूं अब तुझसे


Monday 27 December 2010

पति पत्नी का रिश्ता हो मिनट का पल का या हो दिन महीने साल का

पति पत्नी का रिश्ता हो मिनट का पल का या हो दिन महीने साल का
मिटा सके ये इतना बस नहीं है काल का ;
शिव की भभूती औ  माता का सिंदूर भरा था औ भाव अटूट प्यार का
तब मांग भरी थी तेरी मैंने इश्वर स्वयम गवाह था ,
कैसे भूलूं वो घड़ियाँ मैं आंसूं से सींचा था रिश्ता प्यार का ,
झूठ कहे या भूले तू पर ये रिश्ता मेरे हर जनम हर सांस का ;

भाव से बड़कर क्या दुनिया में
प्यार से अच्छा क्या इन्सा में

सही गलत उंच नीच का फैसला कोई कैसे करे है
है मोहब्बत खुदा का जज्बा उसे बुरा कैसे कहे है /
राधा कृष्ण भजते सभी हैं
द्रौपदी को कहते सती हैं  
रीती में उलझे है क्यूँकर
प्रीती बिन जीना हो क्यूँ कर

प्यार से बड़कर पूजा नहीं कोई इस जगत इस संसार में
क्यूँ झिझक कैसी ये दुविधा क्या मैं नहीं तेरे दिल की छाँव में
सरल नहीं  है राह  प्रीती की पर सरल कहाँ जीना संसार में
क्यूँ हो अब तक तू उलझी क्या कमी रही मेरे  प्यार में ;

प्यार को रब समझा और तुझको जिंदगी
मेरे जीने का उद्देश्य तू ही है तेरी करूँ मै बंदगी /

नाम ले मेरा या पति कह ले या कुछ भी कह के पुकार ले
मेरा जीवन तेरा साँसे तेरी क़त्ल करे या साथ ले

करे बहस इनकार करे या बचपने का नाम दे
समझे भावुकता पागलपन या अर्थहीन कह टाल दे
चाहे समझे कोरी बातें या मुर्खता का नाम दे
 मेरा जीवन तुझको अर्पण तू खुशियों दे या आंसुओं की सौगात दे  /

Friday 10 December 2010

फ्रेंच भाषा भी खूब है पर मुझसे कितनी दूर है

जिंदगी गुजर रही अब नए आशियाने में ,
सीख रहे हर पल कुछ नया जिंदगी नए पैमाने में 
सोना वही है जागना वही है पर साथ नए अनजाने है
दूर देश में बैठे हम आये यहाँ कमाने हैं /


फ्रेंच भाषा भी खूब है पर मुझसे कितनी दूर है 
भरमाती है तड़पाती है  है और बड़ा तरसाती है ,
भागा पीछे वो आगे भागे अलसाया तो वो मुस्काए 
नजर मिलाये पास बुलाये नित नए वो ठौर दिखाए 

फ्रेंच भाषा भी खूब है पर कितनी दूर है 

Sunday 5 December 2010

देखो क्या बनती है नयी कहानी

नयी राह चली है नयी मंजिल पानी ,
जीवन की है नयी रवानी ,
क्या पाया क्या खोया अब तक
बात रही सब वो बेमानी
नयी राह चली है नयी मंजिल पानी

गाँव हैं छोड़ा देश है छोड़ा
नया भेष है नया है डेरा
लोग नए हैं भाषा न्यारी
पर लगती है वो बोली प्यारी

नयी राह चली है नयी मजिल पानी
देखो क्या बनती है नयी कहानी 

 

Saturday 27 November 2010

हंस भी लेती है वो मन ही मन

शादी की चौदहवीं सालगिरह है
सुबह से वो व्यस्त रात तक है
पति आज भी खाली हाथ ही है
आज उसका उपवास भी है


कर्मिणी है धर्मिणी है
काम में अपने गुणी है
बात में मीठापन नहीं है
कर्कशा भी वो नहीं है

खीज के रह गयी है
पति से बहस हो गयी है
सालगिरह  आंसूं में कटी है
सुबह फिर जिंदगी सर पे खड़ी है / 




संघर्षमय जीवन रहा है
माता का वियोग सहा है
पति का व्यवहार सरल है
घर में उसका कब  चला है

नौकरी वो कर रही है
बेटा औ बेटी की धनी वो
चिडचिडा जाती है उनपे
शरीर की सीमा पे खड़ी है
पाले में उसके  कम भाग्य  आया
पति ने भी कहाँ पैसे कमाया
कुढ़ रही मन ही मन वो
गुस्सा निकाले पति पे सब वो

जिंदगी से नहीं है हार मानी 
उसके जीवट की भी है एक कहानी  
सँवार रही है वो बच्चों का बचपन
हंस भी लेती है वो मन  ही मन

Sunday 21 November 2010

जिंदगी तेरी पगडण्डी फिर चल आया मै ,

जिंदगी तेरी पगडण्डी फिर चल आया मै , जिंदगी तेरी बंदगी फिर कर आया मै
खुदा बसता है जमीं पे यकीं न था
तेरी राहों में खुदा देख आया मै

तेरी मोहब्बत तो शामिल है मेरे रग रग में
तेरी चाहत असीम है मेरे हर पल में
तड़प गम  ख़ुशी सब अमानत तेरी
जिंदगी जिन्दा हूँ मै तेरी जफ़ाओं में /

Saturday 6 November 2010

ये दिवाली की रातें उल्लाषित किये है

जगमगाते दिए उजाले का मौसम
झिलमिलाती ये रातें फुलझरियों  की सरगम
गुंजन फटाकों की हँसता हुआ बचपन
ये  दिवाली की रातें ये दिवाली का मौसम

रंगोली के रंग है दिल का उजाला
मिठाई की लज्जत खिलखिलाती हुई आशा
रिश्तों की डोरे मिलने की भाषा
ये दिवाली की रातें दिवाली की आशा

कोई कपडे ख़रीदे कोई गहने चुने है
कोई चांदी पे रुकता कोई सोना धरे है
कोई गाँव को है निकला कोई दुनिया घुमे है
ये दिवाली का मौसम ये दिवाली के दिन है


छुरछुरी की जलना अनारो का खिलना
खिलखिलाते  है बचपन बुड़ापे का हँसना
आनंदित है घर जलते दिए हैं
ये दिवाली की रातें उल्लाषित किये है

Tuesday 26 October 2010

भ्रम है प्यार का या वेदना चाह की

भ्रम है  प्यार का या वेदना चाह की,
 नीरवता की सकल कमाई या स्वप्न मधुमास की ,
सहज क्षितिज की विकल रागिनी या प्रतिध्वनी स्मृति के विवश प्रवाह की ,
चाहत  की पीड़ा या ह्रदय की क्रीडा ,
मंत्रमुग्ध नयन झर झर करता या अपलक आखों  का स्वर कुछ कहता /



Thursday 21 October 2010

जिंदगी तू ही बता तू है क्या चाहती ,

जिंदगी तू ही बता तू है क्या चाहती ,



अहसास नहीं आभास नहीं मृतप्राय  जीवन क्यूँ चाहती
बंधन नहीं हो उलझन नहीं हो क्या तू है मांगती

ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती ,


भाव में है प्यार लेकिन  कहाँ मांग रहा इकरार तेरा
जिंदगी कटी  अभाव से  माँगा कब अहसान तेरा
झुरमुट हो उत्पीडन  का या घोर  समुद्र हो जीवन का
कब प्यार है छूटा श्रद्धा छोड़ी कब रास्ता छोड़ा प्रियतम का




ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती ,

ना रुठती ना है मनाती ना राह करती साथ का
ना विफरती ना अकड़ती साथ करती हमेशा दुस्वार का
ना सिमटती ना बहकती  ना कोई अधिकार छोड़े प्यार का
दूरियां भाती नहीं नजदीकियां जमती नहीं क्या कहे इस साथ का

ऐ जिंदगी तू ही बता तू क्या है चाहती

Monday 18 October 2010

सहमे पत्ते खिले फूल हैं

सहमे पत्ते खिले फूल हैं
महका गुलशन  मौसम नम
 खिलता चेहरा आखें रिक्त
 रुंधा गला बातों मे सख्त
 थाली सजी पूजा के फूल
 सुखा  पत्ता पैर की धुल
खुशियों का मौसम  गम की चिंगारी
सीने में सिमटी  बाहें वो प्यारी
सहमे पत्ते खिले फूल हैं

महका गुलशन मौसम नम

Tuesday 12 October 2010

सत्य मृत्यु है चंचल ये जीवन

भक्त भी प्रिय भगवान भी प्रिय ,
ये मिथ्या संसार भी प्रिय ,
प्रियतम तुझको छोडूँ कैसे
मुझको तेरा नकार भी प्रिय

भाव अचल है चंचल है धड़कन  
प्यार अटल है चंचल ये बंधन
प्यास न जाती आस न जाती
सत्य मृत्यु है चंचल ये जीवन

Tuesday 21 September 2010

एक लम्हा और मिला होता /

बतियाते  घंटो बीत गए 
अब जाने की बेला आई थी 
अभी तो हाथ लिया था हाथों में
पर मोबाइल ने रिंग बजायी थी    
एक लम्हा और मिला होता
 तेरे लबों का अमृत पी लेता

हाथों में हाथ लिए
घूम रहे थे शाम से हम
अभी तो अरमान मचले थे मेरे
अभी सपने चमके थे मेरे
रात हो आई देर हो रही
एक लम्हा और दिया होता
बाँहों में तुझको भर लेता

सुबह सबेरे साथ चले थे
शाम हो आई आखों ने ख्वाब धरे थे
अभी अभी तो धड़कन थी उछली
अभी अभी आखों आखों से प्यास कही थी
देर हुई थी तुझे था जाना
कैसे कहता ये दिल था दीवाना
एक लम्हा और दिया होता
मै अरमानो को जी लेता
भर कर बाँहों में तुझको
तेर लबों का अमृत पी लेता

एक लम्हा और मिला होता /

Friday 17 September 2010

सिमटते दायरों बिखरते संबंधों में भटकाव

सिमटते दायरों बिखरते संबंधों में भटकाव
सहमी अपेक्षा उच्श्रीन्खल इच्छा में उलझाव  
बदलते स्वरुप रिश्तों में समाहित अधिकार का
बड़ता प्रकोप कुछ रिश्तों के नए विकार  का
मान्यताएं टूटती स्व को पोषती नए विचार
मै का प्रहार हम का घटता प्रचार
नयी भागती दुनिया रीती नयी 
 पल के रिश्ते पल की प्रीती नयी


Tuesday 14 September 2010

कौतुहल है उत्सुकता है और बड़ी भावुकता है

कौतुहल है उत्सुकता है और बड़ी भावुकता है
मिलेंगे किस अभिवादन से कितनी ही आतुरता है
प्रीती दिखेगी प्यार दिखेगा या उलझा  संवाद दिखेगा
प्यार मिले तिरस्कार मिले पर ना व्यवहारिक व्यवहार मिले
कौतुहल है उत्सुकता है और बड़ी भावुकता है

मिलेंगे किस अभिवादन से कितनी ही आतुरता है

Friday 10 September 2010

काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ

काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ


राह में कांटे सजे या हो फूल बिखरे पैरों तले
मंजिल तक पहुँचाना नहीं ख्वाब  जीना चाहता हूँ

काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ

इशारे मौसम के रहे हों या हों वो महबूब तेरे
ताका किया अब तक उन्हें अब छूना चाहता हूँ


काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ  
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ











 
अरमान सजोये या मोहब्बत को यादों में पिरोये अब तक
गले लग जा अब तो तुझे अब  जीना चाहता हूँ



काटे कितने ही वसंत अब जीना चाहता हूँ
ऐ जिंदगी देखा किया तुझे अब छूना चाहता हूँ



Sunday 5 September 2010

शमा उदात्त है

शमा उदात्त है
भावों में काम व्याप्त है
तनहाई बिन तेरे
तरसी हर बात है


शमा उदात्त है


भवरे चहके
पराग हैं बहके
नाचे  मोर
अभिलाषाएं दहके


पर्वत प्यासा
प्यासी नीर
हवा प्रेमातुर
उमंगें अधीर


गहरी सांसे
कामी सपने
चंचल मन
मचला बदन


तीव्र पिपाशा
तन भी प्यासा
रोक रहा मै
क्या क्या जिज्ञासा


शमा उदात्त है
भावों में काम व्याप्त है
तनहाई बिन तेरे
तरसी हर बात है



Sunday 29 August 2010

आशायें कितनी रखी थी ख़ामोशी के लफ्जों से

झिझक रहे कदमों से
अनकहे शब्दों  से
आशायें कितनी रखी थी
 ख़ामोशी के लफ्जों से


सपनों की राहें बनी  थी
अभिलाषाओं की आहें हसीं  थी
साकार वो ना कर पाई
दिल की चाहें सजीं थी


                                      
                                 
बहक उठे आखों के आंसूं
द्रवित हुआ ह्रदय बेकाबू
झलक दिखी जब हाँ की बातों में
ख्वाब सजे जागी रातों में 

वो लम्हा अनमोल था कितना

वैसे जीवन का मोल है कितना
वक़्त गया वो बातें बीतीं
राहें हैं तनहाई ने जीतीं






झिझक रहे कदमों से
 अनकहे शब्दों से

आशायें कितनी रखी थी
 ख़ामोशी के लफ्जों से








Thursday 26 August 2010

देश का भाग्य हमारे कर्म पे है

मौलाना मुलायम कठोर है चाहिए आरक्षण
माया ने फैलाई है माया मूर्तियों की विलक्षण
नितीश  नरेन्द्र से दुरी हैं ढूंढ़ रहे
लालू है लाल ममता को कोस रहे
करूणानिधि है परिवारिक निधि निपटाने में फंसे
चिदंबरम नक्सल समस्या में हैं धंसे
बुद्धदेव की बुद्धी टाटा कर गयी
बादल है बदल रहे कैसे ना समझ रहे
हूडा है खाप में अटक रहे 
आडवानी की खोयी हुई है वाणी 
मनमोहन है अमेरिका के गुणगानी 
प्रणव प्रवीण है मंहगाई के
जयराम ही काम कर रहे अच्छाई के
राज का राज है गुंडई पे
 उद्धव भटक रहा संजीदगी से 
चौहान ना तलवार ना जुबान के धनी है
नवीन वेदान्त की बुरायिओं के गुनी है
राजदीप घोष की अवधारणा में दबे हैं
बरखा मौसम बदलता रहता है
शरद अनाज को सडाता बैठा है

देश की परवा कहाँ है किसे
ये नेता और पत्रकार हमने है चुने
देश का दुर्भाग्य चरम पे है
देश का भाग्य हमारे  कर्म पे है

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद  जहां  मैपल के पेड़ों की कतार  किसी का भी  मन मोह लें। तेज़ रफ़्तार से भागती हुई गाडियां  ...