Showing posts with label हिंदी कवितायेँ. Show all posts
Showing posts with label हिंदी कवितायेँ. Show all posts

Saturday 20 March 2010

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,

जिन्दा है मानों बिना प्राण ,

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ;

बड़ा जीवट है ,खूं में उसके ,

स्वाभिमान है मन में उसके ;

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ;

सांसों का भावों से रिश्ता ,

तिरस्कार से धन का नाता ;

वो मुफलिसी और उसका रास्ता ;

किस्से तो दुनिया बुनती है ,

उसको सिर्फ उलाहना ही मिलती है ;

रक्तिम आखें हाथों में छाले ,

ढलती काया पैरों को ढाले ;

संघर्ष से वो कब भागा है ;

स्वार्थ नहीं उसने साधा है ;

साधारण लोग किसे दिखते हैं ;

सब पैसे और ताकत को गुनते हैं ;

मुफलिसी के जख्मों से लहलुहान ,
जिन्दा है मानों बिना प्राण
/

Wednesday 17 March 2010

रहता है मेरे दिल में

रहता है मेरे दिल में,
मगर उसे मिलूं कैसे ;
खिले कमल की पंखुड़ियों को छुयूं कैसे ,
तेरे सपनों को आगोस में भर लूँ ,
तेरा झिझगता विश्वास है,
मै उसको छुयूं कैसे ;
तेरी उलझन सुलझा मै दूँ
तेरी दुविधाओं को मान भी लूँ ,
तेरा इकरार जिऊ कैसे ?

Tuesday 16 March 2010

आखें मींच के सो के उठना ,

आखें मींच के सो के उठना ,

उठते ही वो चेहरा ढूढ़ना ;

दिन में उसकी यादों से यारी ,

रातों को आखों में वारी ;

---

सोचों में अब भी वो रहती ,

सपनों में अब भी वो दिखती ;

उसकी झलक को आखें तरसी ,

दिल में मेरे अब भी वो बसती ;

---

राह न दिखती चाह की कोई ,

आभास नहीं है आस ना कोई ;

पागल मन उन्मुक्त सा खोजे ;

डोर न मिलती प्यार की कोई ;

---

खोजूं मै निगाहें वही ,

जानू केवल बाहें वही ;

अँधियारा कितना भी फैले ,

चाहूँ मै आभासें वही /

---

आखें मींच के सो के उठना ,
उठते ही वो चेहरा ढूढ़ना ;
दिन में उसकी यादों से यारी ,
रातों को आखों में वारी ;

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद  जहां  मैपल के पेड़ों की कतार  किसी का भी  मन मोह लें। तेज़ रफ़्तार से भागती हुई गाडियां  ...