मेरी यादों से जब भी मिली होगी
वो अंदर ही अंदर खिली होगी .
सब के सवालों के बीच में ,
वह बनी एक पहेली होगी .
यंहा में हूँ तनहा-तनहा ,
वंहा छत पे वो भी अकेली होगी .
सूने से खाली रास्तों पे ,
वह अकेले ही मीलों चली होगी .
यूँ बाहर से खामोश है मगर,
उसके अंदर एक चंचल तितली होगी .
जो जला डी गयी बड़ी बेरहमी से,
वो बेटी भी नाजों से पली होगी .
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Saturday 30 January 2010
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