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Sunday 14 March 2010

मैं भी चुप था,वो भी चुप थी ,

मैं भी चुप था,वो भी चुप थी  ,
फिर हो गई कैसे ,बात न जानू .
इधर लगन थी,उधर अगन थी,
लग गई कैसे आग ना जानू .

ना जाने कितने फूलों पर,
बन भवरा मैं ,मंडराया हूँ .
पर क्यों ना मिटी,
ये प्यास ना जानू . 

जिस मालिक के हम सब बच्चे,
है राम वही ,रहमान वही.
फिर आपस में खून -खराबा ,
क्यों हो बैठा मै ना जानू .

हिन्दू-मुस्लिम सिख इसाई ,
ये सब हैं भाई-भाई .
फिर झगड़ा मंदिर -मस्जिद का, 
कैसे हुआ ,ये मैं ना जानू .
 
  

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद  जहां  मैपल के पेड़ों की कतार  किसी का भी  मन मोह लें। तेज़ रफ़्तार से भागती हुई गाडियां  ...