मीठी -मीठी तेरी बोली
मन को मोहित करती है
अंदर ही अंदर मै हर्षित
करके तुझको याद प्रिये
उषा की लाली मे ही
नया सवेरा खिलता है
तिमिर भरी हर रात के आगे
रश्मिरथी उपहार प्रिये
पहले कितना शर्माती थी
अब तुम कितना कहती हो
मुझसे मिलकर खिलती हो
लगती हो जैसे परी प्रिये
मरे अंदर जितना तुम हो
उतना हे मैं तेरे अंदर
हम दोनों मे मैं से जादा
भरा है हम का भाव प्रिये
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Thursday 19 March 2009
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