मैं बोला -'' माँ , दिये की रौशनी जरा जादा करना ,
मैं पढ़ नही पा रहा हूँ । ''
बाप बोला -"अरे ओ , रौशनी कम कर ,
मैं सो नही पा रहा हूँ । "
वह बेचारी रात भर रौशनी कम-जादा करती रही ,
हम दोनों के बीच जीवन भर ,इसी तरह जलती रही ।
(यह कविता मूल रूप में मराठी भाषा में है । मराठी के लोक कवि श्री प्रशांत मोरे जी ने यह कविता सुनाई थी । उसी कविता का यह हिन्दी अनुवाद आप लोगो के लिये प्रस्तुत कर रहा हूँ । )
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Sunday 5 April 2009
देखो कितनी गुमसुम माँ ---------------------------------
साथ मेरे है हरदम माँ
हर दर्द पे मेरे मरहम माँ ।
कोई नही है उससे प्यारी ,
सात सुरों की सरगम माँ ।
सुबह-सुबह फूलो पर ,
प्रेम लुटाती शबनम माँ ।
मुझसे जादा मेरी चिंता ,
देखो कितनी गुमसुम माँ ।
घर के अंदर बात-बात पर ,
देखो बनती मुजरिम माँ ।
सब के लिये जादा-जादा ,
पर ख़ुद लेती कम -कम माँ ।
सब की सुनती पर चुप रहती ,
कितना रखती संयम माँ ।
साथ मेरे है हरदम माँ -----------------------------------------------------------------।
हर दर्द पे मेरे मरहम माँ ।
कोई नही है उससे प्यारी ,
सात सुरों की सरगम माँ ।
सुबह-सुबह फूलो पर ,
प्रेम लुटाती शबनम माँ ।
मुझसे जादा मेरी चिंता ,
देखो कितनी गुमसुम माँ ।
घर के अंदर बात-बात पर ,
देखो बनती मुजरिम माँ ।
सब के लिये जादा-जादा ,
पर ख़ुद लेती कम -कम माँ ।
सब की सुनती पर चुप रहती ,
कितना रखती संयम माँ ।
साथ मेरे है हरदम माँ -----------------------------------------------------------------।
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