Showing posts with label बोध कथा ३० : बोलो सोच समझकर. Show all posts
Showing posts with label बोध कथा ३० : बोलो सोच समझकर. Show all posts

Monday 19 April 2010

बोध कथा ३० : बोलो सोच समझकर

बोध कथा ३० : बोलो सोच समझकर
 एक किसान की एक दिन अपने पड़ोसी से खूब जमकर लड़ाई हुई।
बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो उसे ख़ुद पर शर्म आई। वह इतना शर्मसार हुआ कि एक साधु के पास पहुँचा और पूछा, ‘‘मैं अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहता हूँ।’’ साधु ने कहा कि पंखों से भरा एक थैला लाओ और उसे शहर के बीचों-बीच उड़ा दो।
किसान ने ठीक वैसा ही किया, जैसा कि साधु ने उससे कहा था और फिर साधु के पास लौट आया। लौटने पर साधु ने उससे कहा, ‘‘अब जाओ और जितने भी पंख उड़े हैं उन्हें बटोर कर थैले में भर लाओ।’’
 नादान किसान जब वैसा करने पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि यह काम मुश्किल नहीं बल्कि असंभव है। खैर, खाली थैला ले, वह वापस साधु के पास आ गया।
यह देख साधु ने उससे कहा, ‘‘ऐसा ही मुँह से निकले शब्दों के साथ भी होता है।’’हमे कुछ भी बोलने से पहले १० बार सोचना  चाहिए .
किसी ने लिखा भी है क़ि -----------------------------
              '' जो निकली तो वापस कंहा आएगी ?,
            बात जो हो गयी,वह दूर तक जाएगी ''

 **भारत-दर्शन पत्रिका से ली गयी कहानी लिंक Bharat-Darshan- World's first Hindi literary magazine on the net
 
Bharat-Darshan- World's first Hindi literary magazine on the net

 

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद  जहां  मैपल के पेड़ों की कतार  किसी का भी  मन मोह लें। तेज़ रफ़्तार से भागती हुई गाडियां  ...