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Wednesday 8 December 2010

निस्पृह शिक्षाव्रती डा. आर. बी. सिंह-उमेश सिंह

देश के समग्र विकास के लिए नागरिकों का शिक्षित होना परमावश्यक है। इसी बात को ध्यान में रखकर प्राय: सभी चिन्तकों, सामाजिक सुधारकों और शिक्षाविदों ने शिक्षा को सर्वोपरि स्थान दिया है। यह बात अलग है कि अनेक प्रकार के सरकारी और निजी स्तर पर किए गए शिक्षा सुधार के कार्यों के बावजूद आज भी देश की जनता का एक बडा भाग निरक्षर है। शहरों से दूर ग्रामीण भागों में विद्यालयों का अभाव है। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षण संस्थानों की व्यवस्था और रखरखाव ही नहीं, वहां पर दी जाने वाली शिक्षा का स्तर भी ठीक नहीं है। दुर्दैव से शिक्षा के लिए सरकारी बजट में बहुत कम धन आवंटित किया जाता है। सरकारी स्तर पर शिक्षा के प्रति उदासीनता सर्व विदित है। ऐसे अनेक शिक्षा सेवियों और समाज के समृद्धजनों के प्रयास से अनेक शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की गयी है। जिनके माध्यम से शहरी और ग्रामीण बच्चों और युवकों को शिक्षा का लाभ मिल रहा है। इन शिक्षासेवी महानुभावों ने समाजसेवा का जो मार्ग चुना है वह किसी भी अन्य कार्य से अधिक महत्त्वपूर्ण है। ऐसे ही समाजसेवी और नि:स्पृह शिक्षाव्रती हैं कल्याण के डा. आर. बी. सिंह उन्हें स्नेह से "सिंह सर' उपाख्य से भी पहचाना जाता है।
लम्बी, मजबूत कद-काठी, स्मित चेहरा, चेहरे पर बढी काली दाढी, सफेद कुर्ता-पायजमा और उस पर सुशोभित काली सदरी, डा. आर. बी. सिंह की दशकों पुरानी पहचान है। कल्याण के बिरला कालेज के संस्थापक रजिस्ट्रार के रूप में उन्होंने महाविद्यालय में पठन-पाठन की उच्च परम्परा को जीवंत बनाये रखने के साथ ही अनुशासन की उल्लेखनीय व्यवस्था कायम की। उनके प्रयासों से वर्तमान में बिरला कालेज में कला, वाणिज्य, विज्ञान, सूचना तकनीक सहित अनेक पाठ¬क्रम संचालित किए जा रहे हैं। जिनमें जूनियर कक्षाओं की शिक्षा से लेकर शोधकार्य तक किए जाते हैं। इस समय बिरला कालेज पंचतारांकित श्रेणी का एक प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान बन गया है।
सिंह सर कालेज के कार्यों के साथ ही सामाजिक कार्यों में गहरी रुचि रखते हैं। वे कहते हैं कि समाज के हर वर्ग के लिए कुछ करते रहने से उन्हें आत्मिक सुख मिलता है। इसीलिए उन्होंने देशकाल की नब्ज को पहचानते हुए राजनीति के माध्यम से समाजसेवा का कार्य शुरू किया। उन्होंने वर्ष 1974 में बिरला कालेज की नौकरी शुरू की जबकि उससे पहले ही सर 1971 में अखिल भारतीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। तब से लेकर अब तक लगभग चार दशकों की राजनीतिक यात्रा में सिंह सर ने कई महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। उन्होंने वर्ष 1984 से 87 तक युवक कांग्रेस के रूप में दायित्व का निर्वाह किया। 1987 से वर्ष 2000 तक वे जिला और प्रदेश की नई समितियों में जिम्मेदारीवाले पदों पर रहे और वर्ष 2001 से 2007 तक कल्याण जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। उनके अध्यक्ष रहते हुए कल्याण व आस-पास के क्षेत्रों में कांग्रेस ने अच्छी पैठ बनायी। उसका परिणाम था कि कई वर्षों के उपरान्त कल्याण-डांेबिवली महानगरपालिका में कांग्रेस की सत्ता स्थापित हुई।
डा. आर. बी. सिंह ने राजनीति में रहते हुए कभी किसी पद की लालसा नहीं की, किन्तु जो भी कार्य उन्हें सौंपा गया, उसे पूरी तन्मयता से निभाया और पार्टी के आदेश पर दो बार कल्याण विधान सभा से चुनाव भी लडा।
सिंह सर के लिए राजनीति सेवा का एक माध्यम भर रही। जबकि इनका मुख्य कार्य शिक्षा के ही क्षेत्र में रहा। शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों की ही भांति शिक्षकेतर कर्मचारियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। ऐसा उनका मानना है। इसी ध्येय से उन्होंने वर्ष 1977 से मुंबई महाविद्यालयीन कर्मचारी संघ के अध्यक्ष पद का दायित्व स्वीकार किया। उनके कार्यकाल में अनेक समस्याओं का निदान हुआ। शासन तथा प्रशासन ने उनके रुख की प्रशंसा की। तब से आज तक वे इस पद पर आसीन हैं। उनकी कर्मठता और कुशलता के चलते सिंह सर को अखिल भारतीय स्तर के महासंघ, आल इण्डिया कालेज एण्ड युनिवर्सिटी इम्प्लाइज फेडरेशन का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने इस पद पर रहते हुए विगत बारह वर्षों से पूरे देश का कई बार भ्रमण किया और देश के शिक्षकेतर कर्मचारियों की समस्याओं को केन्द्र व राज्य सरकारों से निदान प्राप्त करवाया।
डा. आर. बी. सिंह यद्यपि 1974 ई. से ही बिरला कालेज में हैं, किन्तु कल्याण की शिक्षा व्यवस्था उन्हें सदैव पीडा पहुंचाती रहती है। कल्याण की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि और क्षेत्र का विस्तार हो रहा था। ऐसे में उन्हें अधिक कालेजों की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने अपने अथक प्रयास से सन 1994 ई. में हिन्दी भाषी जनकल्याण शिक्षण संस्था के द्वारा संचालित के. एम. अग्रवाल कालेज ऑफ आट्र्स, सायंस एण्ड कामर्स की स्थापना की । इससे कल्याण (पश्चिम) की समस्या कुछ हद तक कम हुई, किन्तु कल्याण (पूर्व) में भी एक कालेज की जरूरत को देखते हुए साकेत महाविद्यालय की स्थापना करवाई। वे इन दोनों कालेजों के अध्यक्ष हैं।
सिंह सर का जन्म फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) के सरायगसी गांव में हुआ। यद्यपि गांव शहर के निकट ही है फिर भी लडकियों और गरीब बच्चों की शिक्षा फैजाबाद न जा सकने के कारण बन्द हो जाती थी। अत: उन्होंने वर्ष 2001 में डा. रामप्रसन्ना मणिराम सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय की स्थापना की। इस महाविद्यालय में शिक्षा तथा कला संकाय में पाठ¬क्रम चलाए जा रहे हैं। स्वयं उच्च शिक्षित, एम.ए., पीएच.डी., डी.ए.एम. डा. सिंह ने "मोहन राकेश की सर्जना और विकास' पर शोधकार्य पूरा किया है। साहित्य का विद्यार्थी होते हुए भी उन्होंने तकनीकी शिक्षा के महत्त्व को समय के साथ पहचाना और अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्ज इंजीनियरिंग कालेज की स्थापना के लिए प्रयास शुरू किया है। "महाराणा प्रताप शिक्षण संस्था' के द्वारा इसका संचालन किया जाएगा। उम्मीद है एक-दो वर्षों में इसमें शिक्षण कार्य शुरू हो जाएगा। खेल में बेहद रुचि रखने वाले (वे वालीबाल के अच्छे खिलाडी थे) डा. आर. बी. सिंह ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए सतत प्रयास किया। उनके प्रयासों तथा सहयोग से आज कल्याण में कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हो सकी है। वे इस क्षेत्र में आज भी हैं। सच्चे अर्थों में वे एक श्रेष्ठ शिक्षासेवा व्रती हैं।

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