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Tuesday 27 April 2010

दीवार और आंगन /amerkants novel deevar aur aangn

दीवार और आंगन :-


253 पृष्ठों का यह उपन्यास मई 1969 में अभिव्यक्ति प्रकाशन, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ। यही उपन्यास बादम ें 'बीच की दीवार` सामक शीर्षक से भी प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास के केन्द्र में दीप्ति है। जिसकी उम्र संग्रह वर्ष की है। अशोक को लेकर उसमें शारीरिक वासना जागृत होती है। पूरे उपन्यास में प्रेम, वासना और अंत में विवाह के रूप में इसकी परिणति ही दिखायी पड़ता है।

''दिवार और आंगन में रचनाकार की निगाह दिप्ति में हैं किशोर वत्तियाँ दीप्ति और अशोक को पास ला कर शारीरिक भोग की आकांक्षा पैदा करती हैं। अशोक की आकांक्षा दीप्ति से कुंती की ओर चली जाती है। मनफूल और दीप्ति की निकटता मंे दीप्ति का अहं तुष्ट होता है। मनफूल उसकी प्रशंसा करता है। उसमें नई ग्रंथि बनती है, देश में नाम कमाने की। वह भी संगीत और पहलवानी में मनफूल केवल दीप्ति का शरीर सुख चाहता है और इसी के लिए जाल रचता है। यह सम्बन्ध भी टूट जाता है। सम्बन्धों के टूटने से दीप्ति निराश होती है किन्तु अब वह प्रेम की परिभाषा को शरीर सुख से हटाकर मन तक ले जाती है। मोहन और दीप्ति का संबंध अंतर्जातीय प्रेम विवाह तक पहुँचता है। इस तरह दीप्ति की उन्मादी भावनाएँ प्रेम के विचारवान क्षेत्र में परिणति प्राप्त करती हैं।17

अमरकांत द्वारा लिखा गया यह उपन्यास 'रोमान्टिक ऐटीट्याूड` को अधिक व्यक्त करता है। अमरकांत के इस उपन्यास के पात्र प्रेम, घृणा, करूणा और शारीरिक वासना में जब लिप्त रहते है तब भी उनके विचारों में आदर्श के प्रति एक सजग भाव बना रहता है। यहाँ यह स्पष्ट हो जाता है कि लेखक अपने पात्रों से जो चाहता है वही करवाने का प्रयास करता है। फिर चाहे इसके लिए कहानी या उपन्यास के मूल कथानक और शिल्प में घटित परिवर्तन अविस्वशनीक ही क्यों न हो जाये। इस संदर्भ में हम अमरकांत के दूसरे उपन्यास 'सुन्नर पांडे की पतोह` का उदाहरण ले सकते हैं। एक स्त्री जो जवान है वह अपने ससुर की बुरी नीयत ताड़ कर घर से निकल जाती है। सारा जीवन वह बाहर दूसरों के यहाँ काम करके जैसे-तैसे बिता देती है। पर उसके चरित्र पर कभी कोई दाग नहीं लग पाता। आश्चर्य होता है कि 'मूत` जैसी कहानी लिखनेवाले अमरकांत उपन्यास के कथानक में इतने सीमित कैसे हो जाते हैं? उपन्यासों में अमरकांेत अपनी वस्तुवादी स्थिति को छो़ड़ते रूक जाते हैं। इसी संदर्भ में कमला प्रसाद पाण्डेय जी लिखते हैं कि, ''......तँय है कि परिस्थितियाँ एक सुसंगठित वस्तु की तरह उनके अंदर प्रवेश करती हैं और रचनात्मक संदर्भ के साथ बाहर आ जाती है। भीतर जाने और बाहर आने के क्रम में पूरी आत्मीय तटस्थता निभाने की संभावनायें उनमें हैं लेकिन संभावनाओं का उपयोग कहीं कहीं नही कर पाते। असमर्थता के कारण उपन्यासों में कई जगह कथात्मक विराम लगने लगता है।``18

इन सब के बावजूद अमरकांत के उपन्यासों में पात्रों का संघर्ष, संघर्ष की मौलिकता, सामाजिक परिवेश का गहरा विवेचन, और उपन्यास लेखन की प्रक्रिया में अपनी बौद्धिक उपस्थिति अमरकांत बखूबी दर्ज करते है। 'दीवार और आंगन` रोमान्टिक ऐटीट्याूड में लिखा गया एक सफल उपन्यास हैं। यह उपन्यास किसी बड़े प्रकाशक के द्वारा प्रकाशित नहीं हुआ था। अत: प्रारंभ में इसके डिस्ट्रीब्युशन में भी समस्या आयी। इस बात को स्वयं अमरकांत भी स्वीकार करते हैं।

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