Showing posts with label आज़ादी की पूर्व संध्या पर. Show all posts
Showing posts with label आज़ादी की पूर्व संध्या पर. Show all posts

Sunday 16 August 2015

आज़ादी की पूर्व संध्या पर


सत्तर की हो चली है
थोड़ी गदरा भी गई है
इसे खुली हवा के साथ 
महसूस करता हूँ तो
रोमांचित हो जाता हूँ
आखिर आज़ादी
किसे पसंद नहीं ?
लेकिन जिस तरह के
देश के हालात हैं
लगता है
थोड़ी पथ भ्रष्ट तो नहीं
हमारी आज़ादी ?
सबसे अंतिम व्यक्ति
कि आँखों के आँसू
पोंछने वाला वह सपना
इस नई पूँजीवादी व्यवस्था में
हाशिये पर तो नहीं ?
काँटनेवाले दांत तोड़कर
चाटनेवाली जीभ
छोड़ दी गई है क्योंकि
अब क्रांति
लिजलिजी और बेकार बात है
क्योंकि
यह बाजार के अनुकूल नहीं है
है क्या ?
फ़िर ख़ुद की जरूरतों के बीच
हम कितने बाजारू
कितने आत्मकेंद्रित
और कितने फिरकापरस्त
हो गए
यह हमें एहसास है क्या ?
हमारी संवेदन शून्यता
हमें कितना
अमानवीय बना रही है
कभी राष्ट्र और समाज के
सरोकारों के बीच
हमनें जानना चाहा क्या ?
हम एक राष्ट्र के रूप में
जाति धर्म भाषा और प्रांत
से आगे बढ़कर
इस देश का
कितना हो पायें हैं ?
और कितना हो पायेंगें ?
कभी सोचा हमनें ?
जो रोकती हैं
टोकती हैं
सालती हैं
हमें तोड़ती और बाँटती हैं
उन बातों की राजनीति से
खुद को
अलग कर पाये हम ?
अगर नहीं तो फ़िर
आज़ादी की पूर्व संध्या पर
थोड़ा दुखी हूँ
पर ख़ुश भी हूँ क्योंकि
हाँथों में आयी
थोड़ी गदराई
यह आज़ादी
सुकून तो देती ही है ।
आनेवाली चुनौतियाँ
आनेवाला समय
डरा तो रहा है मगर
मुझे अपनी गहरी और
बहुत गहरी
राष्ट्रिय चेतना और संस्कारों पर
सम्पूर्ण विश्वास है
सनातन शाश्वत
मूल्यों और सिधान्तों पर
गहरी आस्था है ।
हम बचेंगें
हम बढ़ेगें
हम चलेंगें
प्रगति के नए पथ पर
अपने और
अपनों के सपनों के साथ ।
आज़ादी का
यह राष्ट्र पर्व
आप सभी को मुबारक
हमें मुबारक
जय हिंद ।
डॉ मनीष कुमार
BHU

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद  जहां  मैपल के पेड़ों की कतार  किसी का भी  मन मोह लें। तेज़ रफ़्तार से भागती हुई गाडियां  ...