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Friday 12 August 2011

आज मेरे अंदर रुकी हुई एक नदी

आज  मेरे अंदर  रुकी हुई एक  नदी
 सालों बाद फिर चलने के लिए तैयार हुई. 
 किसी के स्नेह का हिमालय 
अपनेपन की ऊष्मा के साथ 
 मेरे लिए पिघलने को तैयार है .

वो पिघलेगी तो 
 मुझे तो बहना ही होगा /चलना ही होगा
उसके प्यार में लबालब होकर
उसके अंदर खुद को बसाकर
खुद को मिटाकर भी
उसी के खातिर
बनना है
परिमल,विमल -प्रवाह.

उसी का होकर
उसी में खोकर
 उसी के साथ
 जी लूँगा तब तक
जब तक क़ि वह देती रहेगी
 अपने प्रेम और स्नेह का जल
 अपनेपन क़ी ऊष्मा के साथ . 




     


 

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