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Wednesday 12 August 2015

अस्सी घाट

अस्सी घाट

ऐसे वैसे
जैसे तैसे
न जाने कैसे कैसे
किस्सों कों
गढ़ना और
खिलखिलाकर हँसना
अस्सी की पहचान है ।

गंगा किनारे का
यह बनारसी घाट
किसी भी
हाट बाजार से
कम नहीं है ।

गंजेड़ी,भंगेड़ी
उठल्ले,नसेड़ी
नंग धड़ंग बच्चे और विदेशी
तफ़रीबाज,अड़ीबाज
अस्सी पर
किसी की
कोई कमी नहीं है ।

सीढ़ी ही सीढ़ी
उपस्थित रहती है
यहाँ हर एक पीढ़ी
चाय-पान-सिगरेट
के साथ
बनारसी बोली एकदम ठेठ ।

पंडा- पुरोहित
साधू -संन्यासी
मंडली जमाये
न जाने किन किन
संस्थाओं के न्यासी ।

भोकालबाज,रंगबाज
साधू संतों का साजबाज
फुरसतियों का रेला
जिनके ठेंगे पर
दुनियाँ का कामकाज ।

बंपर बकैती
एक से एक
नेता और नूती
जी भर के गारी
भोसड़ी/भोसड़ो/भोसडिय़ा
की बहार
यही अस्सी की पहचान ।

होटल पिज़ेरिया
सटे रहें छोरे- छोरियाँ
बम बम भोले का नारा
गंगा का किनारा
सुबह-ए-बनारस
से आग़ाज
अस्सी का अलग है मिज़ाज ।

यह अस्सी घाट
बनारस की पहचान है
मुझे तो लगता है
यह बनारस की जान है ।

जब भी आता हूँ यहाँ
कुछ नया पाता हूँ
नयेपन की ठनक का
यह प्राचीनतम घाट
अस्सी ।

यहाँ मस्ती है मौज है
चहल पहल हररोज है
चाहे भोर हो या संध्या
अस्सी पर आनेवाला
हर कोई भाव बिभोर है ।


             मनीष कुमार
             BHU

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