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Tuesday 27 April 2010

अमरकांत क़ी कुछ महत्वपूर्ण कहानियाँ

अमरकांत क़ी कुछ महत्वपूर्ण कहानियाँ
 मकान :-




'मकान` कहानी मनोहर नामक व्यक्ति की नये मकान को लेने की परेशानी के साथ शुरू होती है। वह शहर के एक पुराने मकान में कई सालों से रह रहा था। पर आर्थिक परेशानियों के चलते अब उसे और उसकी पत्नी को यह लगने लगा था कि इस मकान में ही कोई दोष है। अत: उन्हें किराये पर ही कोई दूसरा मकान ले लेना चाहिए। दूसरे मकानों का किराया उसके बजट में नहीं है अत: वह नया मकान दिलवाने में लेखक की मदद चाहता है।



वह यह भी लेखक को बताता है कि वह एक ज्योतिषी से मिलाहै और उन्होंने भी भूत-प्रेत के साये की बात कहकर मकान बदलने की ही सलाह दी है। लेखक मनोहर को आस्वाशन देकर वापस भेज देतें है। पर वे खुद नहीं समझ पाते कि इस बारे में वे क्या करें।



आदमी अपनी परेशानियों के किस तरह सोचने का दायरा बढ़ाकर भी गलत ही सोचना है, इसे मनोहर के माध्यम से समझा जा सकता है।



 हंगामा :-



'हंगामा` लीला का वह नाम था जो मोहल्ले वालों ने उसे दिया था। लीला मोहल्ले के घरों में जाकर कुछ न कुछ माँगने के लिए बदनाम हो गयी थी। इसलिए लोगों ने उनका नाम ही 'हंगामा` रख दिया था।



लीला की उम्र चालिस की थी। उनके जीवन का सबसे बड़ा अभाव यहीं था कि उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। डॉक्टरों ने भी उन्हें निराश ही किया। लीली जी की अजीब मानसिक स्थिति थी। वे सब के यहाँ जाती। किसी के घर कोई नयी था अच्छी बात होती तो वे उससे नाराज हो जाती। कई दिनों तक उनसे बात ही न करती। पर कुछ ही दिनों में सब भूल कर फिर आना-जाना शुरू कर देती।



इधर बच्चे न होने से वो बहुत चुपचाप सी रहती थीं। इसी बीच उनके घर के बाहर एक कुतिया ने कुछ बच्चे दिये। लीला अब उनकी सुरक्षा में ही लगी रहती। क्या मजाल था कि कोई उन्हें छू भी दे। लीला मामूली सी बात पर 'हंगामा` खड़ा कर देती।



 कुहासा :-



'कुहासा` 1980 के दशक में लिखी गयी अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। इस कहानी में उन्होंने झींगुर नाम सतरह वर्ष के बच्चे के जीवन संघर्ष को चित्रित किया है। एक ऐसा संघर्ष जो झीगुर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता है।



झींगुर के पिता घर की दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण बेटे को घर से शहर भगा देता हैं। शहर आकर झींगुर रोजही पर मेहनत करने लगता है। पर जी-तोड मेहनत करने के बाद भी उसे सिर्फ दो वक्त खाने भर का ही पैसा मिल पाता। कभी- कभी तो वह भी नसीब न होता। ऐसे में उसे पानी पी कर ही गुजारा करना पड़ता।



ठंडी के दिनों में सरकार की तरफ से उसे एक कंबल मिला था। पर एक दलाल 25 रूपये देकर वह भी ले लेता है। पैसों से वह दो वक्त भरपेट खाना खाता है। पर ठंडी बहुत बढ़ गयी थी। सर्द रात में उसका रहने का कोई ठिकाना नहीं था। पहनने-बिछाने के कपड़े नहीं थे। वह ठंड की एक रात में सर घुटनों में डाले बैठा हुआ था। रात को वह एक तरफ लुढ़क गया। सुबह जब जमादार आया तो उसने उसे मरा हुआ पाया। उसकी लाश लावारिश पायी गयी थी। कुछ देर बाद उसे पास्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। सरकार के लिए यह पता लगाना बहुत जरूरी था कि झींगुर की मौत स्वाभाविक थी या किसी ने उसको जहर-वहर तो नहीं दिया।



उसकी मृत्यु पर कुहासे की चादर थी। कुहासा व्यवस्था, गरीबी और ठंड का? अब इनमें से मृत्यु का जिम्मेदार किसे माना जा सकता था? अमरकांत पाठक के लिए यह प्रश्न छोड़ देते हैं।



 पहलवानी :-



'पहलवानी` कहानी ऐसे लोगों को केन्द्र में रखकर लिखी गयी है जो यह नहीं समझ पाते कि वे कितने महान हैं? अपने आगे उन्हें सभी फीके लगते हैं। पर यथार्थ की जमीन पर बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उन्हें झुकना ही पड़ता है। पर इस हेतु भी वो अपनी गौरवगाथा को खुद बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं और बदले में सामने वाले से कुछ हथियाने को ही अपनी पहलवानी की जीत मानते हैं।



लेखक के घर ऐसे ही एक व्यक्ति आ पहुँचते हैं। वे अपने आप को बहुत बड़ा साहित्यकार और लेखक के भाई का मित्र बताते हैं। वे सभी साहित्यकारों को जानते हैं। 150 से अधिक उपन्यास लिख चुके हैं। सरकारी नौकरी को तुच्छ मानते हैं। बड़े-बड़े अधिकारी तो उनसे अनुरोध करते हैं पर वे किसी से भी मिलने नहीं जाते। बड़े भाई का काफी इंतजार करने बाद जब वे नहीं आते तो लेखक महोदय आने का आशय स्पष्ट करते हुए 50 रूपये उधार माँगते हैं जिसे लेखक देकर उन्हें विदा करते हैं।



 लोक परलोक :-



'लोक परलोक` कहानी के केन्द्र में व्यक्ति का अपना स्वार्थ और इस स्वार्थ सिद्धी के लिए दूसरों का शोषण करने की बात है। आदमी इसके लिए कुछ आदर्शवादी तर्क भी सामने प्रस्तुत कर देता है।



कहानी के लेखक के घर एक दिन उनके पुराने मित्र दिनेश किसी साथी के साथ पहुँचे। बात-चीत में पता चला कि वे पिछले कई सालों से चुनाव लड़ते और हारते आये हैं। पर देश और जाति के कल्याण के लिए अभी भविष्य में चुनाव जीतने की इच्छा बरकरार है।



अपने इस महान उद्देश्य के लिए वे 'अकबर` नाम अपने नौकर को बहला फुसलाकर 'बालचन्द आर्य` बना देते हैं। वे अपने देश और जाति का गौरव इसी तरह बढ़ाने में विश्वास रखते हैं। यही उनके जीवन का सिद्धांत भी है। बालचन्द्र आर्य बाद में अधिक तनख्वाह न मिलने के कारण उनके यहाँ से काम छोड़ देता है। उसे दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। पर जब उनकी मृत्यु हो जाती है तो यही महोदय पूरे विधि विधान से उसकी अंत्येष्टी करवा देते हैं। इस तरह वे उसके लोक और परलोक दोनों को सँवारने की बात करते हैं।



अंत में चलते समय आने वाले चुनाव में लेखक से अनुरोध करते हैं कि वे देश व जाति की भलाई के लिए उन्हें जितायें।



चाँद :-



'चाँद` कहानी उस व्यक्ति की तरक्की की कहानी है जो इस अवसरवादी समाज में चापलूसी, झूठ और संंबंधों को सीढ़ी के रूप में इस्तमाल करता है। और उसे एकाएक इस बात का आश्चर्य भी होता है कि वह एक साधारण व्यक्ति से शहर का मह>वपूर्ण व्यक्ति कैसे बन जाता है?



इसी सवाल का जवाब जानने के लिए वह अपने मित्र प्रमोद से मिलता है। प्रमोद बातों ही बातों में उसे चाँद कहता है तो वह इसका अभिप्राय समझ नहीं पाता। इस पर प्रमोद उसे समझाता है कि अब शहर के बड़े-बड़े लोगों के साथ उसका उठना बैठना है। अफसरों की बीबियों की वह चापलूसी करता है। प्रमोद इसे बुरा नहीं मानता पर उसके अनुसार यह साहित्य का रास्ता नहीं था। प्रमोद फिर कहता है कि साधारण लोग प्रभावशाली लोगों के दफ्तरों के छोटे-छोटे कर्मचारी हैं। तुम उनके मालिकों के साथ घूमते फिरते हो इसलिए ये तुम्हें भी बड़ा आदमी समझते हैं और तुम्हारा सम्मान करते हैं। उनके लिए तुम चाँद ही हो गए हो।



प्रमोद की बातें सुनकर उनके मित्र गुस्से से फूल जाते हैं और सभी बातों को झूठा कहकर शांत हो जाते हैं।



 एक धनी व्यक्ति का बयान :-



'एक धनी व्यक्ति का बयान` विमल नाम एक युवक के जीवन संघर्ष की कहानी है। जिसकी बुद्धि धैर्य, प्यार व समझदारी से पोषित है। वह परिणाम की परवाह किए बिना अपने काम में लगा रहता है, इसीलिए वह जीवन में सफल भी होता है।



विमल ने जैसे ही इंटर पास किया, तो उसके पिताजी ने उसकी जिम्मेदारी उठाने से मना कर दिया। उसे मजबूरी में शहर आकर रहना पड़ा। शहर में वह एक-दो ट्याूशन करने लगा था। जो पैसे मिलते उनसे किसी तरह दो वक्त का खर्चा निकल पाता था।



इसी बीच शहर के एक बूढ़े उपेक्षित रईस से विमल का मेल जोल बढ़ता है। विमल चोरी-छुपे उन्हें सिगरेट के पैकेट लाकर दे देता था। वे सज्जन रईस तो थे पर पारिवारिक उपेक्षा के शिकार थे। उन्हें जब विमल ने अपनी परेशानी बतायी तो उन्होंने विमल की सिफारिश करा के ज्यूनियर क्लर्क की नौकरी दिला दी।



लेकिन ऑफिस के लोग भी विमल को परेशान किया करते थे। फिर विमल ने रामदत्त सिंह से जान-पहचान बनायी, जो कि कार्यालय परिषद के महामंत्री भी थे। इससे धीरे-धीरे विमल का ऑफिस में काम करना सहज हो गया। रामदत्त जी ने विमल के नाम बोरियों (गेहँू की) फटका लगाते रहे। और लाभ स्वरूप विमल बीस हजार के मालिक बन गए थे। जब विमल को यह पता चला तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। क्योंकि उसे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं था। इस तरह विमल अपने धैर्य, प्रेम व समझदारी से धनी बनता है।



 बीच की जमीन :-



'बीच की जमीन` सांप्रदायिक दंगों की त्रासदी को रेखांकित करने वाली कहानी है। यहाँ बीच की जमीन से तात्पर्य हमारे अपने भारत देश से है। लेखक के अनुसार ''हमारे देश की कल्पना एदा एक ऐसी बीच की जमीन के रूप में की जाती रही है, सिमें विभिन्न वर्ग और समुदाय के लोग सम्मानपूर्वक मिल-जुलकर रहें। हमारे इतिहास में, हमरी संस्कृति में और हमारे वर्तमान हिन्दुस्तान में वह बीच की जमीन अब भी बची है।``10



कहानी की शुरूआत दंगों के बाद शहर की हालत पे विस्तार से चर्चा के साथ होता है। शांति प्रयासों के लिए सभाएँ व जुलूस निकाले जा रहे थे। कुछ लोग इन प्रयासों से खुश थे तो कुछ लोग नाराज हो रहे थे। इन्हीं प्रयासों के चलते मोहल्ले के नौजवान एडवोकेट श्री नईम के घर पर सभा बुलायी गयी।



इस सभा में ही वे अपने भाषण में अपने कुछ अनुभव बताते हैं। वे दंगों के दौरान एक बूढ़े व्यक्ति से मिले थे जिसने कई दिनों से कुछ खाया नहीं था। उसकी जावन बेटी बिमार थी। उसकी मदद करते हुए उन्होंने कभी भी यह नहीं जानना चाहा कि उसकी जाति क्या है? हाँ, वह था 'बीच की जमीन` का ही।


मनोबल :-



'मनोबल` कहानी के माध्यम से अमरकांत ने समाज के सुविधासंपन्न लोगों के मनोविज्ञान का सुंदर चित्रण प्रस्तुत करते हुए समाज के अभावग्रस्त लोगों द्वारा कुछ भी कर जाने की मजबूरी को दिखलाया है।



ट्रेन यार्ड से जब प्लेटफार्म पर आती है तो सब यात्री उसमें सवार होने लगते हैं। किंतु एसी सेकण्ड क्लास का एक डिब्बा बंद रहता है। इस डिब्बे के यात्री खूब शोर मचाते हैं, पर अंत में दरवाजे को तोड़ने का निर्णय लिया जाता है। लेकिन दो- चार प्रहार के बाद ही वह दरवाजा अपने आप अंदर से ही खुल जाता है। दरवाजा खुलने पर किसी की हिम्मत नहीं होती कि वह अंदर जाकर देखे कि कौन है? हिम्मत करके एक पुलिसवाला अंदर जाता है। उसे गठरीनुमा एक चीज दिखायी पड़ती है। सबको आशंका होती है कि उसमें विस्फोटक है। उसे खोलकर देखने की हिम्मत किसी की नहीं होती।



अत: इस समस्या को हल करने के लिए पुलिसवाला एक गरीब भिखारी लड़के को लालच देकर बुला लाता है। वह उसे गठरी लाने को कहता हैंै। लड़का आराम से डिब्बे में घुस जाता है और गठरी को बाहर लेकर चला आता है। पुलिसवाले के कहने पर वह उसे खोल भी देता है। उस गठरी में मजे का सत्तू, प्याज, मिर्च और पुड़िया नमक रहता है। गठरी खुल जाने पर सब इत्मिनान की साँस लेते हैं।



उस गरी लड़के को वही गठरी ईनाम के तौर पर दे दी जाती है। यात्रियों में एक नेता जी भी रहते हैं। वे पुलिसवाले की प्रशंसा करते हैं और उन्हें मिलने की लिए वक्त देते हैं। सारे यात्री डिब्बे में बैठ जाते हैं और ट्रेन धीरे-धीरे प्लेटफार्म छोड़ने लगती है।

      

ताशकंद शहर

 चौड़ी सड़कों से सटे बगीचों का खूबसूरत शहर ताशकंद  जहां  मैपल के पेड़ों की कतार  किसी का भी  मन मोह लें। तेज़ रफ़्तार से भागती हुई गाडियां  ...