शादी की चौदहवीं सालगिरह है
सुबह से वो व्यस्त रात तक है
पति आज भी खाली हाथ ही है
आज उसका उपवास भी है
कर्मिणी है धर्मिणी है
काम में अपने गुणी है
बात में मीठापन नहीं है
कर्कशा भी वो नहीं है
खीज के रह गयी है
पति से बहस हो गयी है
सालगिरह आंसूं में कटी है
सुबह फिर जिंदगी सर पे खड़ी है /
संघर्षमय जीवन रहा है
माता का वियोग सहा है
पति का व्यवहार सरल है
घर में उसका कब चला है
नौकरी वो कर रही है
बेटा औ बेटी की धनी वो
चिडचिडा जाती है उनपे
शरीर की सीमा पे खड़ी है
पाले में उसके कम भाग्य आया
पति ने भी कहाँ पैसे कमाया
कुढ़ रही मन ही मन वो
गुस्सा निकाले पति पे सब वो
जिंदगी से नहीं है हार मानी
उसके जीवट की भी है एक कहानी
सँवार रही है वो बच्चों का बचपन
हंस भी लेती है वो मन ही मन
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