ON LINE HINDI JOURNAL
ONLINE HINDI JOURNAL
Wednesday 7 July 2010
रूह जलती रही मेरी सर शैया पे
न गम की बरसात होती है ,न ख़ुशी भी साथ होती है ,
जिंदगी बीत रही कुछ ऐसी ,दिन भी रात होती है /
.
न मुलाकात की मैंने ,न कोई शुरुवात की तुने ,
रूह जलती रही मेरी सर शैया पे ,
मेरी
राख को न आग दी तुने /
1 comment:
vandana gupta
8 July 2010 at 12:53
bahut sundar sher.
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Share Your Views on this..
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
भारतीय ज्ञान परंपरा
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी
अमरकांत की कहानी -डिप्टी कलक्टरी :- 'डिप्टी कलक्टरी` अमरकांत की प्रमुख कहानियों में से एक है। अमरकांत स्वयं इस कहानी के बार...
यूं.जी. सी . का तुगलकी फरमान ,जागो इंडिया जागो
मै बार -बार university grant commission के उस फैसले के ख़िलाफ़ आवाज उठा रहा हूँ ,जिसमे वे एक बार M.PHIL/Ph.D वालो को योग्य तो कभी अयोग्य बता...
bahut sundar sher.
ReplyDelete