बोध कथा २३: भ्रूण हत्या
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बहुत समय पहले क़ि बात है ,एक बार जंगल में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस आयोजन के माध्यम से यह निश्चित करना था क़ि जंगल का सबसे चतुर और चालाक पक्षी कौन है.यह निर्णय करने के लिए सभी जानवर जंगल के नदी किनारे जमा हो गये थे.
सभी पक्षियों क़ी तरह नर और मादा कौवे भी वहां आ गए. नर कौवे को पूरा भरोसा था क़ी चुनाव में वही विजयी घोषित किया जाएगा. लेकिन उसके मन में एक आशंका भी थी. वह मादा कौवे से बोला,''सभी लोग हमे चतुर पक्षी समझते हैं. लेकिन तुम्हारी वजह से मेरी नाक कट सकती है. वह कोयल अपने अंडे तुम्हारे घोसले में ड़ाल जाती है और तुम्हे पता भी नहीं चलता .तुम उसके अण्डों को अपना अंडा समझ के पालती हो. तुम भी ना -------''
नर कौवे क़ी बात सुनकर मादा कौवा बोली,''तुम्हारी सोच गलत है.मैं अपने और कोयल के अण्डों को पहचानती हूँ.लेकिन मैं उसके अण्डों को फोड़ नहीं सकती.'' इस नर कौवे ने फिर प्रश्न किया ,''तुम उसके अंडे क्यों नहीं फोड़ सकती ?'' इस पर मादा कौवा बोली,''हम इंसान थोड़े ही हैं जो भ्रूण हत्या करेंगे.मैं इसे पाप समझती हूँ.ये इंसान इस बात को जाने कब समझेंगे ?''
मादा कौवे क़ी बात सुनकर नर कौवे क़ी आँख भर आयी.उसने कहा,''प्रिये मेरी नजरों में अब तुम चालक और चतुर ही नहीं,अपितु सबसे समझदार पक्षी भी हो.मुझे तुमपर गर्व है.''
उन दोनों क़ी बातों को उस सम्मेलन के सभापति शेर ने भी सुन ली.वह मादा कौवे से बड़ा प्रभावित हुआ.अंत में सभापति ने सब को मादा कौवे क़ी विचारधारा से अवगत कराते हुवे,उसे ही विजेता घोषित किया .जंगल के सभी जानवरों ने इस निर्णय का समर्थन किया .
हमे भ्रूण हत्या पर रोक लगानी चाहिए. किसी ने लिखा भी है क़ि----------------------
''भ्रूण हत्या से बढकर के ,जग में दूजा पाप नहीं
ऐसा जो भी कर्म करे,वो हरगिज इंसान नहीं ''
Tuesday 13 April 2010
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