Monday 4 January 2010

विरह की पीड़ा , मै अकेला ,धुल अंधड़ /

विरह की पीड़ा , मै अकेला ,धुल अंधड़ ,

रात नीरव ,चाँद निर्मल ,आसुओं का रण,

शाम रक्तिम ,निर्जन है मन ,यादें विहंगम ,

मोह इक व्यथा है ,

प्यार सुख की विधा है ,

लालसा बंधन की ,

चाह है ये ज्वलन की ,

क्यूँ हो विस्मित दुःख की दशा पे ,

क्यूँ हो चिंतित खुद की व्यथा पे ,

आग कब भागे जलन से ,

बर्फ कब पिघली ठिठुरन से ,

नीला अतुल आकाश खुला है ,

सागर विशाल भरा पड़ा है ,

समय निरंतर चल रहा है,

मृत्यु को जीतोगे कैसे ,

प्यार तो हर ओर पड़ा है /

विरह की पीड़ा , मै अकेला ,धुल अंधड़ ,
रात नीरव ,चाँद निर्मल ,आसुओं का रण,
शाम रक्तिम ,निर्जन है मन ,यादें विहंगम ,

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