Wednesday 28 October 2009

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

तुझे जरूरत ना पड़ती थी कहने की ,

तेरे अहसासों पे अमल कर देता था मै;

तेरी आखों में बुने सपनों को ,

अपने भावों से सजों देता था मै ;

तेरी राहों के काटें चुनता ,

तेरी मधुभासों में खोया रहता था मै ;

तेरी खुशियों को तुझसे ज्यादा सजोता ,

तेरे आंसुओं को अपनी आखों से रो लेता था मै ;

इन यादों से कैसे किनारा कर लूँ ,

गर तुझसे मोहब्बत एक गलती थी ;

उसे तोड़ कर गलती कैसे दोबारा कर लूँ ?

तेरी खुशियाँ अब भी मुझे प्यारी हैं ,

तुझे मिल के उन्हें कैसे गवांरा कर लूँ ;

तेरा आभास अब भी मेरे धड़कनों में शामिल है ,

तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

2 comments:

  1. waah.........adbhut likha hai..........mohabbat ho to aisi..............aaj to kamaal ka likha hai.

    तेरी खुशियाँ अब भी मुझे प्यारी हैं ,

    तुझे मिल के उन्हें कैसे गवांरा कर लूँ ;

    तेरा आभास अब भी मेरे धड़कनों में शामिल है ,

    तेरे पास आ उसे कैसे पराया कर लूँ ?

    kya khoob likha hai.........sare jahan ki khushi aur gam jaise in panktiyon mein simat aaya ho.

    sirf ahsason mein jo ho use pana koi jaroori to nhi.........prem ko wakai aapne sahi paribhashit kar diya hai.........badhayi sweekarein.

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