Sunday 27 September 2009

सब्र कर कुछ दिन

मुस्कराहटें ,खुशी की आहटें और सुहासित ये शमा ;
खिला दिन ,महका बदन तेरी नजरों ने मोहित किया ;
भटक रहे अरमान ,तेरे इजहारे मोहब्बत ने हर्षित किया ;
तेरे अनछुए ओठों का पहला ये आभास ,
मेरा मन तेरी खुसबू में डूबा हुआ ;
शरमाते सकुचाते बाँहों में तेरा आना ;
मेरा तन उमंगों से पुलकित हुआ ;

सब्र कर अभी कुछ दिन, बड़ने दे प्यास ;
उफनने दे ये कशिश ,कर कुछ और प्रयास ;
कयास लगाने दे उन पलों के हर्ष का ;
महकती सांसों और बदन से बदन के स्पर्श का ;
मदहोशी Align Rightरा आने दे ,बड़ने दे जजबातों को ;
सब्र कर कुछ दिन ,अभी बड़ने दे मुलाकातों को ;
फिर होगा जो अवश्यमभावी है ;
मेरे दिल को तू बहुत भायी है ;
पुरानी यादों से किनारा तो जरा कर लूँ ;
अपने जख्मी दिल के भावों को जरा सिल लूँ ;
उनके बेवफाई के सितम को जरा पिने दे ;
फिर चोट खा सके इतना तो जख्मो को जरा भरने दे ;

कल तू भी अपनी राहों पे बड़ जाएगा ,पर तकलीफ जरा कम होगी ;
पहले की तरह हर बात पे ,आखें तो ना नम होगी ;
आशाएं नही पाली है तो तकलीफ भी न होगी ;
तेरी मंजिल से पहले का एक पड़ाव ही हूँ मैं ;
सब्र कर इक धोखा खाया इन्सान भी हूँ मैं ;

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