Friday 12 June 2009

एक जुगनू की भांति जुगजुगाता मैं रहा /

एक जुगनू की भांति जुगजुगाता मै रहा ;
चाँद की तरह मुसकराता वो रहा ;
पपीहे की प्यास मुझमे थी ,न मरी वो आस मुझमे थी ;
देवी सी काया तुझमे थी, पथ्थरों की माया तुझमे थी ;
तू सागर की लहरें , मै दरिया का पानी ;
तू बदलता मौसम , मै धरती की रवानी ;

तू चहक है, मौज है, और है एक नशा ;
मै आस हूँ, प्यास हूँ , और एक सदा ;
तू खिलखिलाती हँसी है, और है स्वछन्द धारा ;
मै दिल का दर्द हूँ ;और हूँ समय में सिमटी एक विचारधारा /
तू अजेय प्यार , जीवन को हर पल दर्द बना देती है ;
मै छुद्र वासना जो मन को बहका देती है ;
वासना को वक्त मिटा देता है , कमजोर बन देता है ;
तू कालजयी है ,धड़कन के साथ पली बड़ी है ;
हर गुजरे पल के साथ तकलीफ बढाती रहती है ;
जीवन को मृतप्राय ,जीने को दुसवार बनाती रहती है ;
मै छनिक ;तू सर्वदा ;
मै तिरिस्कृत ; तू आधिस्ठित ;
मै वासना , तू प्यार ;
तू आराधना ,मै अन्धकार /
मैं वासना ,तू प्यार /

1 comment:

  1. कविता की माला में शब्दरूपी मोती पिरो कर......मन के भावो को बहुत ही खूबसूरती के साथ उकेरा है.....

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