Saturday 25 April 2009

शुन्यता अपना प्रभुत्व हर बार जता देती है ,जिंदगी फिर प्रश्न चिह्न बना लेती है

शुन्यता अपना प्रभुत्व हर बार जता देती है ,जिंदगी फिर प्रश्न चिह्न बना लेती है ;
रस्ते लौटा लाते हैं, जहाँ से शुरू मंजिल की तलाश होती है ;
समय अबाधित गति है , चलाना नियति ,
परिवर्तन सृजन का आधार है , श्रिस्टी का अभिप्राय है ;
संवेदनाएं भ्रमित हैं , अकंछायें द्रवित ;
आशाएं अचंभित;
वक़्त और भाग्य का अजीब मंथन ,
मन का सुरीला क्रंदन ;
कोशिशें हमेशा कामयाब नहीं होती ,
पर हर कोशिश भी ख़राब नहीं होती ;
मंजिलें पे पहुँच के फिर मंजिल की तलाश होती है ;
जिंदगी को नए प्रश्नों की आस होती है ;
शुन्यता अपना प्रभुत्व हर बार जता देती है ,जिंदगी फिर प्रश्न चिह्न बना लेती है ;
रस्ते लौटा लाते हैं, जहाँ से शुरू मंजिल की तलाश होती है ;

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