Tuesday 23 December 2008

अभिलाषा

अभिलाषा मुक्तक शैली मे लिखी गई मेरी कविता हैइसमे कुल १५० बंद हैंकुछ बंद आप कई लिये यंहा लिख रहा हूँ

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मेरा अर्पण और समर्पण

सुबकुछ तेरे नाम प्रिये

श्वास -श्वास तेरी अभिलाषा

तू जीवन की प्राण प्रिये

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तनया तू है मानवता की

प्रेम भाव की तेरी काया

तेरे प्रेम का जोग लिया तो

प्रेमी बन वन फिरूं प्रिये


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प्रेम नयन का अंजन है तू

प्रेम भाव का खंजन है तू

तेरी आँखों का सम्मोहन

मेरे चारों धाम प्रिये


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तुझमे नूर खुदाई का है

मजहब तू शहनाई का है

तू इश्क इबादत की आदत

अब तो मेरी बनी प्रिये



ये बंद आप को पसंद आंयें तो अवस्य सूचित करेंफ़िर और भी बंद आप लोगो की सेवा मे प्रस्तुत करूँगा

4 comments:

  1. bahut hi badhiya bhav hain.........prem se sarabor

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  2. THEY ARE EXTREMALY HEARTGIVING EXAMPLES OF LOVE

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  3. it is extremely heartwarming...write more $ more

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  4. Doctor Shaab, ek kavita Bacchhan ji ne likhi thi, Madhushala, bas apki taareef main itna kah sakta hoon, ki apki panktiyan padkar unki yaad aa gayee, Ek aur cheez, bhai regular likha kijiye. Taki is bhagati jindagi mai,hum jese kaviyon ko thoda aaram mile.
    Bande ka bhi ek chota sa blog hai, samay mile to jarroor aayiyega.
    Prabhatsardwal.blogspot.com

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